*।।रचना शीर्षक।।*
*।।यकीन का खाद पानी, बचा कर*
*रखता है हर रिश्ते को।।*
आपस में बचे नहीं यकीन जब
तो रिश्ता छूट जाता है।
नज़रों का लिहाज न बचे बाकी
तो रिश्ता रूठ जाता है।।
दिल से दिल तक की नाजुक
डोर है हर रिश्ता।
गर प्रेम से न सहेजो तो अवश्य
हर रिश्ता टूट जाता है।।
गर किसी की खुशी में खुशी
हमको मिलती है।
किसी की मुस्कान से मन की
कली हमारी खिलती है।।
अश्रुपूरित संवेदना जाग्रत होती
है किसी के दर्द में।
भावना हमारी यह रिश्तों की हर
तुरपाई सिलती है।।
हर रिश्ते को मन से बहुत ही
निभाना जरूरी होता है।
यही माँग कि दिल से हमदर्दी
दिखलाना जरूरी होता है।।
रिश्तों की जमीन ध्यान रखें कि
कभी सूखने न पाये।
आपस की छोटी बड़ी बातों को
भुलाना जरूरी होता है।।
स्वार्थ की बुनियाद पर हर रिश्ता
हिल जाता है।
बस जरा से अहसासे फिक्र से
खिल जाता है।।
स्नेह प्रेम विश्वास होते हैं खाद
पानी रिश्तों के।
सूखता नहीं पौधा कभी गर दिल
से दिल मिल जाता है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।*
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