दिल के सूनेपन को अब आबाद कर।
ग़म नहीं सुख की ज़रा तादाद कर।
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कर लिया दुश्मन बनाके सामना।
गाँठ दिल की खोलकर इतिहाद कर।
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बाग मन का सूखकर कांटा हुआ।
गुल मुहब्बत के खिलाकर शाद कर।
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मानता खुद को विधाता तू अगर।
अश्क से आँखें मेरी आजाद कर।
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ध्यान अरचन कुछ नहीं करती कभी।
भक्ति में पैदा मेरी उन्माद कर।
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नींव मेरी ज़िन्दगी की तू फ़कत।
हार दिल मुझपर मुझे नाबाद कर।
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तू सुनीता का कन्हैया है अगर।
वो तुझे बस तू उसे ही याद कर।
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इतिहाद= संधि/मेल
तादाद़= संख्या में बहुत
सुनीता असीम
5/2/2021
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