सुनीता असीम

 दिल के सूनेपन को अब आबाद कर।

ग़म नहीं सुख की ज़रा तादाद कर।

****

कर  लिया  दुश्मन  बनाके  सामना।

गाँठ दिल की खोलकर इतिहाद कर।

***

बाग मन का सूखकर कांटा हुआ।

गुल मुहब्बत के खिलाकर शाद कर।

***

मानता खुद को विधाता तू अगर।

अश्क से आँखें मेरी आजाद कर।

***

ध्यान अरचन कुछ नहीं करती कभी।

भक्ति में पैदा  मेरी  उन्माद  कर।

***

नींव मेरी ज़िन्दगी की तू फ़कत।

हार दिल मुझपर मुझे नाबाद कर।

***

तू सुनीता का कन्हैया है अगर।

वो तुझे बस तू उसे ही याद कर।

***

इतिहाद= संधि/मेल

तादाद़= संख्या में बहुत


सुनीता असीम

5/2/2021

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511