सार
20.2.2021
जीवन का सार
किसने समझा
किसने जाना
भाग रहे सब
हो स्वयं से बेगाना ।
डोर हाथ में उसके बंधी है
जब चाहे वो हमें नचाए
हम खुश है सोच सोच कर
जीवन को है हमें ही चलाए ।
जैसी उसकी मरजी होती
जीवन राह उस ओर ही मुड़ती
अच्छा बुरा तो सबको पता है
फिर भी पथ से क्यों गिर जाना ।
भाव हमारे होते हैं वैसे
जैसे ईश कठपुतली नचाते
रंगमंच ये दुनिया सारी
हम बस अपने पात्र निभाते ।
कर अपने किरदार को पूरा
समय हुआ ईश हमें बुलाते
न कुछ व्यर्थ हुआ न सँजोया हमने
सब को छोड़ एक दिन चले जाते ।
स्वरचित
निशा अतुल्य
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