बच्चों के लिए स्कूल खुलने पर छोटी सी रचना - "आहिस्ता ही सही गुलज़ार हुई बगिया को देख, था तिमिर घिर चुका दानिस्ता तदबीर को देख"- दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

 बच्चों के लिए स्कूल खुलने पर छोटी सी रचना

            ______गज़ल_____

आहिस्ता ही सही गुलज़ार हुई बगिया को देख,

था तिमिर घिर चुका दानिस्ता तदबीर को देख।


अब कोरोना का ये दरिया थम गया है जहां में,

चल रहे थे कशमकश सारे हर नशेमन को देख।


खिल उठें  हैं  चेहरे नज़ारे  हैं अदीवा देख सारे,

है हक़ीकत शिक्षा का मंदिर उसकी अडीना को देख।


अब ये खुशियां वाबस्ता हैं बच्चों सी जागीर से,

दामन सारा भीग गया मुदर्रिस के हौसले को देख।


है ये गौरव शिक्षा जनसलभ कायद़े-कानून से

फैले गांव से शहरों तलक अब सफ़ीने को देख।


हम तो सजदे में खड़े हैं तहज़ीब के पेश-ए- नज़र,

फैली खुशियां अरुणिमा है व्याकुल मुदर्रिस को देख।


    दयानन्द_त्रिपाठी_व्याकुल


गुलज़ार - खिला हुआ बाग-बगीचा

दानिस्ता तदबीर - सोच कर निकाली हुई युक्ति

नशेमन - घर, घोंसला

आदीवा - सुखद, कोमल

अडीना - पवित्र, गुडलक

वाबस्ता - जुड़ी हुई

मुदर्रिस - शिक्षक या अध्यापक

सफ़ीने - आदेश पत्र, समन, नाव, कश्ती

अरुणिमा - लालिमा




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