निशा अतुल्य

 सुप्रभात 

1.2.2021

*प्रेम*


कुछ दूर तुम चले 

कुछ हम 

आया एक झौंका

बिछड़ गए ।


ताप वो 

न तुम सह पाए

न हम 

एक ठंडी छाँव में 

दरखत बदल गए ।


लाल चुनर प्यार की

लगती थी जो मुझको भली

तुम्हारी काली साड़ी ने 

मायने बदल दिए ।


नैनो के कजरे में 

कभी छवि तुम्हारी थी

सो गए हैं ख़्वाब सारे 

और नैना खुल गए ।


गेसुओं में महका बेला

और मद्धम सांस हैं 

परछाइयों में ढूंढूं तुमको 

पर तुम न साथ थे ।


चलो बन जाए 

फिर से हम अज़नबी

राह में जब तुम मिलों तो

धड़कने न साथ दे ।


स्वरचित 

निशा"अतुल्य"

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