नूतन लाल साहू

 त्याग


सभी सिद्धिया मिलेंगी

यदि मौन धारण किया

इस रहस्य की बात को

कौन समझ सका है

आता है सबका शुभ समय

फिर काहे को घबराता है

लिख के रख लें एक दिन

होगा,काम तुम्हारा

पर,जरा जरा सी बात पर

तू क्यों रोता है

त्याग के बिना

कुछ भी संभव नहीं है

क्योंकि सांस लेने के लिए भी

पहले सांस छोड़ना पड़ता है

सारी बातें, कह चुके है

तुलसी सूर कबीर

बचा खुचा सब लिख गए

केशव और रहीम

भूतकाल इतिहास है

वर्तमान है उपहार

जिसने झेला ही नहीं है

दुःख संकट संघर्ष

वह क्या खाकर पायेगा

जीवन में उत्कर्ष

सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र से सीखो

स्वप्न में ही सब कुछ त्याग दिया

आया प्रलयंकारी संकट

पर ईमान को न बिकने दिया

वो नर से नारायण बन गया

याद करो समय बहुत बीत गया

पर उसे कौन भूल सका

त्याग के बिना

कुछ भी संभव नहीं है

क्योंकि सांस लेने के लिए भी

पहले सांस छोड़ना पड़ता है


नूतन लाल साहू

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