*विषय।। बाग।।बगीचा।।उपवन।।*
*रचना शीर्षक।।हम सब फूल हैं*
*माँ भारती के उपवन के।।*
*विधा।।मुक्तक।।*
मेरा देश महान इक गुलशन
बाग बगीचा है।
मराठी गुजराती जैन सिंधी ने
मिल कर सींचा है।।
इसके फूलों के रखवाले हैं
सिख हिन्दू ईसाई।
मुस्लिमों ने भी देकर साथ
गोरों से खींचा है।।
माँ भारती का यह उपवन
एकता की मिसाल है।
हर पत्ता बूटा दिखता बहुत
ही खुशहाल है।।
एक फूल ना तोड़ने देंगें इन
नापाक चालबाजों को।
हरियाली इसकी हर रंग
बहुत बेमिसाल है।।
हमारी मातृभूमि की बगिया
विश्व में चमक रही है।
महक इसकी बहुत दूर तक
दमक रही है।।
तिनका पत्ता डाली महफूज
हर भारतीय के हाथ में।
छू न पायेगा बाड़े की तार यही
इसकी धमक रही है।।
बेला चंपा चमेली गुलाब मिल
कर साथ साथ हैं।
गेंदा जूही कनेर मोगरा लिये
हाथों में हाथ हैं।।
दिल बहुत विशाल बगिया का
दे चैन आराम दर्द में।
ध्येय देना शीतल छाया ओ करना
बस परमार्थ है।।
चारों ओर आम नीम बरगद
की दीवार है।
चिनार चीड़ के दरख़्त रोकते हर
तीरो तलवार हैं।।
गुलमोहर चंदन वृक्ष महका रहे
इस बाग को।
मातृभूमि माँ भारती का उपवन
चहक रहा बार बार है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"।।बरेली*
मो 9897071046/8218685464
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