डॉ.राम कुमार झा निकुंज

 दिनांकः ०४.०२.२०२१

दिवसः गुरुवार

छन्दः मात्रिक

विधाः दोहा

विषयः शूल


भूल   सदा  करता  मनुज , जीवन को   अनुकूल।

चिन्तन यदि प्रतिकूल  मन , बने   भूल  नित शूल।।१।।


विरहानल आतप  मनसि , चुभते   दिल बन शूल। 

बाट   जोहती   प्रिय   मिलन , क्या  मैंने की भूल।।२।।


सम्प्रेषण     हो   जाँच   में , नैतिकता     हो  मूल।

खुले गबन का   पोल अब , चढ़े भ्रष्ट   नित  शूल।।३।।


जन   मन   शोषण   देखकर , यीशू मानस शोक। 

अलख   जगाया   शान्ति  का , शूल  चढे़  बेरोक।।४।।


भौतिकता    जंजाल   में , नैतिक पथ  नित भूल।

सत्य    विमुख  संघर्ष पथ , मर्माहत   दुख   शूल।।५।।


संघर्षी       सम्वेदना , पड़े     सत्य     पर   धूल।

स्वार्थ   धरा  होता सफल ,सच आहत छल शूल।।६।।


कुछ  द्रोही   बैठे   वतन ,  प्रगति  विरोधी  भूल।

न्याय क्रान्ति के नाम पर , दहशत     दंगा  शूल।।७।।


आन्दोलन  के नाम पर , भोंक   शूल  निज देश।

बस किसान भड़का रहे ,  देश विमुख  परिवेश।।८।।


राजनीति सत्ता   विमुख , तड़पे    सत्ता   भोग।

फँस  विदेश  षडयंत्र   में , बने    शूल    दुर्योग।।९।।


राष्ट्रधर्म   को   भूल कर ,  देश  हानि   आकूल।

ध्वज तिरंग अपमान  कर , लोकतंत्र     निर्मूल।।१०।।


लखि   निकुंज   मन वेदना , शूल   बने  गद्दार।

बेनकाब   साज़ीश   अब ,   राष्ट्र   द्रोह   संहार।।११।।


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"

रचनाः मौलिक (स्वरचना)

नई दिल्ली

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...