दिनांकः ०४.०२.२०२१
दिवसः गुरुवार
छन्दः मात्रिक
विधाः दोहा
विषयः शूल
भूल सदा करता मनुज , जीवन को अनुकूल।
चिन्तन यदि प्रतिकूल मन , बने भूल नित शूल।।१।।
विरहानल आतप मनसि , चुभते दिल बन शूल।
बाट जोहती प्रिय मिलन , क्या मैंने की भूल।।२।।
सम्प्रेषण हो जाँच में , नैतिकता हो मूल।
खुले गबन का पोल अब , चढ़े भ्रष्ट नित शूल।।३।।
जन मन शोषण देखकर , यीशू मानस शोक।
अलख जगाया शान्ति का , शूल चढे़ बेरोक।।४।।
भौतिकता जंजाल में , नैतिक पथ नित भूल।
सत्य विमुख संघर्ष पथ , मर्माहत दुख शूल।।५।।
संघर्षी सम्वेदना , पड़े सत्य पर धूल।
स्वार्थ धरा होता सफल ,सच आहत छल शूल।।६।।
कुछ द्रोही बैठे वतन , प्रगति विरोधी भूल।
न्याय क्रान्ति के नाम पर , दहशत दंगा शूल।।७।।
आन्दोलन के नाम पर , भोंक शूल निज देश।
बस किसान भड़का रहे , देश विमुख परिवेश।।८।।
राजनीति सत्ता विमुख , तड़पे सत्ता भोग।
फँस विदेश षडयंत्र में , बने शूल दुर्योग।।९।।
राष्ट्रधर्म को भूल कर , देश हानि आकूल।
ध्वज तिरंग अपमान कर , लोकतंत्र निर्मूल।।१०।।
लखि निकुंज मन वेदना , शूल बने गद्दार।
बेनकाब साज़ीश अब , राष्ट्र द्रोह संहार।।११।।
कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचना)
नई दिल्ली
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें