अनिल गर्ग

 उखड़ती ज़िन्दगियों  को,

वो अक्सर संभाल लेता है !

अच्छे अच्छों को,

मौत के मुँह से निकाल लेता है !! 


न वो हिन्दू देखता है,

न कभी मुसलमान देखता है !

इंसा का साथी है वो,

हर शख्स में बस इंसान देखता है !! 


केस कितना भी गंभीर हो,

वो हिचकिचाता नहीं कभी ! 

मुकद्दमे की पेचीदगी देखकर,

वो सकुचाता नहीं कभी !! 


उसके हाथों में जो हुनर है,

बखूबी जानता है वो ! 

अपने पेशे को ईश्वर की,

पूजा मानता है वो !! 


जब भी जाता है वो अदालत,

अपने ईष्ट को याद करता है ! 

सफल हो जाए मुकद्दमा,

यही प्रार्थना करता है !! 


केस कितना भी बड़ा हो,

वो जी जान लगा देता है ! 

मुवक्किल को जिताने में,

वो पूरा ज्ञान लगा देता है !! 


अगर हो जाए सफल तो,

हजारों दुआएँ लेता है !

अगर वो हार जाए तो,

लोगों का क्रोध सहता है !! 


खरी खोटी वो सुनता है,

फिर भी खामोश रहता है ! 

अपनी असफलता का उसको,

बहुत अफसोस रहता है !!


वो जानता नहीं किसी को,

मगर धीरज बंधाता है ! 

निरंतर कर्म के पथ पर,

वो बढ़ते ही जाता है !! 


उसे मालूम है कि जिन्दगी,

तो भगवान ने दी है ! 

पर करे जन की सेवा वह

यह उसकी भी हसरत है ! !


अनिल गर्ग, कानपुर

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