उखड़ती ज़िन्दगियों को,
वो अक्सर संभाल लेता है !
अच्छे अच्छों को,
मौत के मुँह से निकाल लेता है !!
न वो हिन्दू देखता है,
न कभी मुसलमान देखता है !
इंसा का साथी है वो,
हर शख्स में बस इंसान देखता है !!
केस कितना भी गंभीर हो,
वो हिचकिचाता नहीं कभी !
मुकद्दमे की पेचीदगी देखकर,
वो सकुचाता नहीं कभी !!
उसके हाथों में जो हुनर है,
बखूबी जानता है वो !
अपने पेशे को ईश्वर की,
पूजा मानता है वो !!
जब भी जाता है वो अदालत,
अपने ईष्ट को याद करता है !
सफल हो जाए मुकद्दमा,
यही प्रार्थना करता है !!
केस कितना भी बड़ा हो,
वो जी जान लगा देता है !
मुवक्किल को जिताने में,
वो पूरा ज्ञान लगा देता है !!
अगर हो जाए सफल तो,
हजारों दुआएँ लेता है !
अगर वो हार जाए तो,
लोगों का क्रोध सहता है !!
खरी खोटी वो सुनता है,
फिर भी खामोश रहता है !
अपनी असफलता का उसको,
बहुत अफसोस रहता है !!
वो जानता नहीं किसी को,
मगर धीरज बंधाता है !
निरंतर कर्म के पथ पर,
वो बढ़ते ही जाता है !!
उसे मालूम है कि जिन्दगी,
तो भगवान ने दी है !
पर करे जन की सेवा वह
यह उसकी भी हसरत है ! !
अनिल गर्ग, कानपुर
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