सुनीता असीम

 विषय-मां पर दोहे


मां की सेवा सब करो, कर दे बेड़ा पार।

तीन देव से है बड़ी,इसपर सब बलिहार।

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मत मांगे तू भीख यूँ, करके हाथ पसार।

दुख भरे सुख करनी मां,महिमा अपरम्पार।

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फैला देती रोशनी,देखे जिस जिस ओर।

मात कृपा हो हर दिशा,न ओर मिले न छोर।

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आंचल में हो दुख भले, सुख की करे बयार।

महकाती है सृष्टि यूँ, जैसे  दाल  बघार।

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जितनी हो सेवा करो,जब तक टूटे तार।

पछताना मत बाद में, दिना बचे हैं चार।

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सुनीता असीम

११/२/२०२१

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