डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 दिनांकः १३.०२.२०२१

दिवसः शनिवार

छन्दः मात्रिक

विधाः दोहा

विषयः वेदना

शीर्षक इठलाते लखि वेदना


इठलाते    लखि  वेदना , खल  सम्वेदनहीन।

 झूठ    लूट   धोखाधड़ी , धनी विहँसते दीन।।


लावारिस    क्षुधार्त  मन , देख   फैलते   हाथ।

आश हृदय कुछ मिल सके ,कोई बने तो नाथ।।


आज मरी लखि वेदना , दीन दलित अवसाद।

दया  धर्म  करुणा कहाँ ,  ख़ुद  होते  आबाद।। 


मरी  सभी  इन्सानियत , मरा   सभी   ईमान।

हेर  फेर  कर   लाश  में , नहीं कोई  पहचान।। 


देह   वसन  आवास  बिन , रैन  बसेरा   रात।

बंज़ारन    की  जिंदगी  , शीत  ताप बरसात।। 


दरिंदगी  चहुँओर  अब ,  लूट  रहे जग लाज।

कायरता     निर्लज्जता , निर्वेदित     समाज।। 


आहत जन   आतंक से  ,  देश द्रोह    अंगार।

मार   काट   दंगा  करे  , दया    वेदना   मार।।


फूट  रहे  निर्वेद  स्वर , लोभ  मोह मद स्वार्थ।

रिश्ते   नाते   सब  मरे , भूले   सब   परमार्थ।। 


मातु पिता गुरु श्रेष्ठ को , तजी आज सन्तान।

जिस माली पुष्पित चमन,दी उजाड़ मुस्कान।।


सीमा रक्षक  जो  वतन , देते निज बलिदान।

प्रश्नचिह्न उन शौर्य पर  , उठा    रहे  नादान।।


नाम मात्र  कलि वेदना,पा निकुंज मन पाद।

भूल सभी पुरुषार्थ को , तहस नहस बर्बाद।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

रचनाः मौलिक 

नई दिल्ली

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