प्रेम तो बेहिसाब होना था।
भक्त का जब खिताब होना था।
********
देखकर सामने कन्हैया को।
फिर हमें इज्तिराब होना था।
********
रोशनी देने के लिए हमको।
कृष्ण को आफ़ताब होना था।
********
जब उन्हें प्रेम कर लिया हमने।
इश्क ये कामयाब होना था।
********
देखते जब रहे उन्हें इक टक।
तब उन्हें बेहिजाब़ होना था।
********
सुनीता असीम
४/२/२०२१
##########
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें