सुनीता असीम

 प्रेम तो       बेहिसाब होना था।

भक्त का जब खिताब होना था।

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देखकर सामने कन्हैया को।

फिर हमें इज्तिराब होना था।

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रोशनी देने के लिए हमको।

कृष्ण को आफ़ताब होना था।

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जब उन्हें प्रेम कर लिया हमने।

इश्क ये कामयाब होना था।

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 देखते जब रहे उन्हें इक टक।

तब उन्हें बेहिजाब़ होना था।

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सुनीता असीम

४/२/२०२१

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