भूकम्प
धैर्य धारिणी धरित्री का धैर्य जब
खंड खंड हो जाता
धरती करती हो रौद्र कम्पन
चहुँ ओर तांडव मच जाता
शोषण, दोहन और प्रतिबंधों की
जब आँच सुलगती है
तब क्रोध की भीषण ज्वाला की
लपटें धरती पे पहुँचती हैं
मानवीय तिरस्कार से आहत
जब वसुधा दहकती है
दारुण दुख का दरिया बन
भूकम्प में बदलती है
हो कम्प कम्प कम्पायमान
धरती करतल नृत्य करती है
सर्वत्र मचा है शोर और कोलाहल
मानव प्रजाति आर्त स्वर में क्रंदन करती है
ढह गई सभी अट्टालिकाएँ
सूनी पड़ी हैं सब वीथिकाएँ
सब नष्ट भृष्ट धरती करती है
गिरते कठपुतली से मानव
भूकम्प की लहर जब चलती है
चीत्कार मचा देता है भूकम्प
आपदा ये जब आती है
बचता न कोई इस त्रासदी से
आहत होता है जन जन
नष्ट कर जाता है सब कुछ
क्षण भर में ही मानव जीवन
ये प्राकृतिक आपदा बन
जाती बड़ी दुखदाई
तब मस्तक पर चिंता की रेखा खिंच
ये बात समझ में आई
धरती है पूज्या नहीं ये भोग्या
न करो तिरस्कार इसका तुम
है मानव जाति का सुदृढ़ आधार
रखो ध्यान इसका तुम
डॉ निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
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