विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल--

1.

हसीं ख़्वाब जो तुमने पाले हुए हैं

ये सब दाँव तो देखे भाले हुए हैं 

2.

बुलंदी पे हैं आप जिसकी  बदौलत

उसी पर ही तोहमत उछाले हुए हैं

3.

मिली पेट भर आज बच्चों को रोटी 

यूँ हीं तो नहीं हाथ काले हुए हैं 

4.

पुरानी हवेली पे हम रंग कर के

बुज़ुर्गों की अज़्मत सँभाले हूए हैं

5.

बराबर अँधेरों से की है लड़ाई

कहीं जाके तब यह उजाले हुए हैं

6.

 नज़र डाल तू चारा चुगने से पहले

 शिकारी कमन्दे भी  डाले हुए हैं

7.

कहा आज महफ़िल में सबने ही  *साग़र*

कई शेर तेरे निराले हुए हैं 


🖋️विनय साग़र जायसवाल

कमन्दे-फंदे ,पाश , फंदेदार रस्सी

3/2/2021

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