सुनीता असीम

 हे कन्हैया मैं तुम्हें ज़िन्हार करती हूँ।

मान जाओ मैं तुम्हीं से प्यार करती हूँ।

*****

इक नज़र मुझपे कभी तो डाल लेना तुम।

दिल मेरा तुझसे लगा इकरार करती हूँ।

*****

तुम भले मिलना नहीं मुझसे कभी देखो।

नाम अपना  नाम  तेरे  यार  करती  हूँ।

*****

दिल धड़कता है मेरा तब जोर से कान्हा।

आइने  में  जब  तेरा   दीदार  करती  हूँ।

*****

अब पराया और अपना भा नहीं सकता।

मान अपना सब तुझे श्रृँगार करती हूँ।

*****

मान जाओ  हे सुदामा के सखा  मोहन।

फिर न कहना मैँ नहीं मनुहार करती हूँ।

*****

अब सुनीता कह रही तुमसे यही माधव।

कंत अपना बस तुम्हें स्वीकार करती हूँ।

*****

ज़िन्हार=सावधान

सुनीता असीम

६/२/२०२१

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...