हे कन्हैया मैं तुम्हें ज़िन्हार करती हूँ।
मान जाओ मैं तुम्हीं से प्यार करती हूँ।
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इक नज़र मुझपे कभी तो डाल लेना तुम।
दिल मेरा तुझसे लगा इकरार करती हूँ।
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तुम भले मिलना नहीं मुझसे कभी देखो।
नाम अपना नाम तेरे यार करती हूँ।
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दिल धड़कता है मेरा तब जोर से कान्हा।
आइने में जब तेरा दीदार करती हूँ।
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अब पराया और अपना भा नहीं सकता।
मान अपना सब तुझे श्रृँगार करती हूँ।
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मान जाओ हे सुदामा के सखा मोहन।
फिर न कहना मैँ नहीं मनुहार करती हूँ।
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अब सुनीता कह रही तुमसे यही माधव।
कंत अपना बस तुम्हें स्वीकार करती हूँ।
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ज़िन्हार=सावधान
सुनीता असीम
६/२/२०२१
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