दीपक शर्मा

 *मोहल्ला क्लाॅस*


बच्चों को इंतजार करते हुए

कई महीने हो गये

किंतु स्कूल अब तक तक नहीं खुला। 

साहेब ने कह दिया -

"अब मोहल्ला क्लास पढ़ाइये।"

मैं हर रोज साढ़े आठ बजे

आॅफिस में दस्तखत बनाकर

चला जाता हूँ गाँव और झुग्गी बस्तियों की ओर

जहाँ घर के नाम पर

ज्यादातर 

सरपत और घास-फूस की झोपड़ी मिलती है

और मिलते हैं 

पुराने कच्चे खपरैल का मकान

जो ढहने की स्थिति में होते हैं

वर्ष में दो बार 

चिकनी मिट्टी से इसकी लिपाई न की जाय

तो निश्चय ही ये ढह जायेंगे

पक्के मकान तो कहीं-कही ही दिखते हैं


बच्चों को ढूँढ़ते हुए

भारत माता के अनेक चेहरे 

देखने को मिलते हैं 

गाँव व झुग्गी बस्तियों में


इन बस्तियों में

नंग-धड़ंग बच्चे

कहीं कंचा, गड़ारी तो कहीं

चिब्भी खेलते हुए मिलते हैं

तथा खुले आसमान में

स्नान करती हुई औरतें भी

दिख जाती हैं

जो हमें देखते ही

साड़ी का पल्लू

गर्दन तक खींच लेती हैं

कुछ औरतें 

घेरकर हमें खड़ी हो जाती हैं

पूछती हैं -

"हमारे लिए कोई नयी योजना है क्या?"

साथ ही साथ करती हैं अनेक शिकायतें -

"मारसाब हमें राशन कब मिलेगा? 

लाॅकडाउन का पैसा 

हमारे खाते में नहीं आया। 

नन्हूकुआ का जूता और बस्ता फट गया है"

हम झूँझला उठते हैं

जी करता है कि कह दें कि

हमीं सरकार हैं क्या? "

तब कहाँ  याद रहता है

हम सरकार न सही

किंतु सरकार के नुमाइन्दे तो हैं। 


हमें जरा-सा 

जुकाम या खाँसी आती है तो

भय-सा व्याप्त हो जाता है

कहीं हम कोरोना से ग्रसित तो नहीं

किंतु मोहल्ला क्लाॅस में न जाना

अपने उपर होने वाली 

कार्यवाही की तैयारी होती है

हम माॅस्क लगाना नहीं भूलते

बच्चों से कहते हैं-

दूर-दूर बैठो! 


मोहल्ला क्लाॅस के समय

बच्चों के पिताओं व दादाओं

जा रहे होते हैं

किसी मजदूरी की तलाश में

उनकी जिह्वा

सुखी रोटियों पर

स्वाद नहीं तलाशती

किंतु दूसरे का स्वाद

फीका न पड़ जाये

इसके लिए करते हैं वे

पुरजोर मेहनत। 

हम उनका साइकिल रोककर कहते हैं -

"चाचा आपके पास ऐंड्रायड मोबाइल है क्या? "

वे चौंककर कहते-

"ऐंड्रायड मोबाइल! 

जउना में फिलिम अउर गाना बजेला उहै का?"

उन्हें समझाना पड़ता-

"हाँ!  वही मोबाइल,

उम्मा दीक्षा ऐप अउर रीड एलाँग

डाउनरोड करना है

बच्चे अब आॅनलाइन पढ़ेंगे"

वे दिखाते हैं कीपैड मोबाइल

या खाली जेब झाड़ देते हमारे सामने

"साहेब हमारे पास मोबाइल ही नहीं है। "

तो हमें कहना पड़ता -

"कउनो बात नहीं 

बच्चे को मोहल्ला क्लास में भेजा कीजिए!

या हम आपके घर 

खुद आया करेंगे

अब सरकार

मेरा घर मेरा विद्यालय योजना चला रही है

ऐसे ही रोज आयेंगे हम आपके घर

सिखायेंगे आपके बच्चों को

गणित और भाषा

मगर समस्या एक अजीब है

हम पढ़ाते हैं जब

बच्चों को

अग्रेंजी वर्णमाला का अक्षर एsss

खूँटे पर बँधी बकरियाँ चिल्लाती है मेsss

उनके अभिभावक थमा जाते हैं

मेरे हाथों में मोटा-सा डंडा

कहते हैं -

"इन्हें रोज-रोज पीटा कीजिए साहेब!

ई गदेला लोग अइसे नहीं पढ़ेंगे"

हम डंडा नहीं थामते

आधारशिला के माध्यम से

तलाशते हैं बच्चे का विकास दर

जानना चाहते हैं

बच्चे के कमजोरी का कारण

ढूँढ़ते हैं खुद में कमियाँ

और प्रेरणा लक्ष्य पाने के लिए 

करते हैं घोड़ा-दौड़।


-दीपक शर्मा

जौनपुर उत्तर प्रदेश 

मो0 8931826996

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