डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 दिनांकः ०९.०२.२०२१

दिवसः मंगलवार

छन्दः मात्रिक

विधाः दोहा

शीर्षकः बढ़े मान चहुँदिक प्रगति


गौरव    है   मुझको   वतन , शत  शत उसे प्रणाम।

बढ़े मान  चहुँदिक प्रगति , जन धन यश सुखधाम।।


हो   शिक्षा सब  जनसलभ, स्वस्थ  रहे   जन गात्र।

जाति   धर्म   भाषा   बिना ,   मानक  बने  सुपात्र।।


मर्यादित    आचार   हो ,  नित    प्रेरक   वात्सल्य।

मौलिकता   पुरुषार्थ  हो ,  कर्मशील      साफल्य।।


साधु समागम कठिन जग, सद्गुरु  दुर्लभ   लोक।

मातु  पिता  भू गगन  सम ,  मिले   ज्ञान आलोक।।


राष्ट्रधर्म      कर्तव्य      हो ,  लोकतंत्र     विश्वास।

परमारथ    सेवा     वतन ,  नीति  प्रीति  आभास।।


हरित भरित सुष्मित प्रकृति , ऊर्वर   भू    संसार।

तजो  स्वार्थ  संभलो मनुज , प्रकृति  बने उपहार।।


यह   ग्लेशियर   चेतावनी  ,  भूकम्पन     तूफ़ान।

जलप्लावन  ज्वालामुखी , रोक प्रकृति अपमान।।


जो कुछ जीवन में मिला , समझ    ईश   वरदान।

पाओ  सुख  संतोष  को ,  खुशी प्रीति यश मान।।


सब प्राणी समतुल्य जग ,  सबका जग अवदान।

पंच भूत  निर्मित   जगत , जीओ  बन    इन्सान।।


जन मन  मंगल भाव  मन ,जन विकास अवदान।

जीवन  अर्पित  देश  को ,   मातृशक्ति    सम्मान।।


छवि निकुंज मन माधवी , खिले कुसुम मकरन्द।

फैले  खुशियाँ अरुणिमा,धवल कीर्ति निशिचन्द।।


कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

रचनाः मौलिक (स्वरचित)

नई दिल्ली

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