नूतन लाल साहू

 कर्म


कर्म का,धर्म से अधिक महत्व है

क्योंकि,धर्म करके

भगवान से मांगना पड़ता हैं

पर,कर्म करने से

भगवान स्वयं,फल देता है

पिंजरा रूपी काया से

स्वांस का पंछी बोले

तन है नगरी, मन है मंदिर

परमात्मा है जिसके अंदर

दो नैन है,पाक समुंदर

ओ पापी,अपने पाप को धो लें

हाथ में आया,रतन

लेकिन कदर न जानी

जानबूझकर तू,अनजान बनता है

जैसे सदा,तू जिंदा रहेगा

खुद ही खुद को तुम पहचानो

और करो,अमृत पान

उलझी हुई है,जिंदगी तेरी

कर्म कर,फिर से सजा लेे

गुरु की मूर्ति से ही सीख लें

एकलव्य,श्रेष्ठ धनुर्धर बन गया

माता पिता की सेवा कर

श्रवण कुमार का नाम,अमर हो गया

कर्म ही बनाता है

सपनों को साकार

जिसने भी सत्कर्म किया

उसका बेड़ा पार हुआ

कर्म का, धर्म से अधिक महत्व है

क्योंकि, धर्म करके

भगवान से मांगना पड़ता हैं

पर,कर्म करने से

भगवान स्वयं फल देता है


नूतन लाल साहू

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