*दूरियाँ*
*दूरियाँ*(गीत)
आदमी आदमी में रहें दूरियाँ,
मग़र आदमियत से न हों दूरियाँ।
अगर आदमियत से हुए दूर हम-
करेंगी वमन विष का भी दूरियाँ।।
गले हम मिलें या मिलें हम नहीं,
मिलें हाथ से हाथ या फिर नहीं।
अगर दिल से दिल का मिलन हो रहा-
मिटेंगी ही निश्चित सभी दूरियाँ।।
सदा हाथ जोड़े हम करते नमन,
सदा मीठी भाषा का रक्खें चलन।
अगर मीठी बोली का करते अमल-
बढ़ेंगी कभी भी नहीं दूरियाँ।।
प्रचुर भाव देवत्व पलता वहाँ,
विमल सोच मस्तिष्क निर्मल जहाँ।
इस तरह भाव-संगम-हृदय यदि बने-
त्वरित भाग जाएँ जो थीं दूरियाँ।।
घड़ी संकटों की है आती अगर,
लड़ें उससे हम सब सदा हो निडर।
एकता-मंत्र का सूत्र यदि पा लिए-
रहेंगी कभी फिर नहीं दूरियाँ।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें