डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दूरियाँ*
           *दूरियाँ*(गीत)
आदमी आदमी में रहें दूरियाँ,
मग़र आदमियत से न हों दूरियाँ।
अगर आदमियत से हुए दूर हम-
करेंगी वमन विष का भी दूरियाँ।।

गले हम मिलें या मिलें हम नहीं,
मिलें हाथ से हाथ या फिर नहीं।
अगर दिल से दिल का मिलन हो रहा-
मिटेंगी ही निश्चित सभी दूरियाँ।।

सदा हाथ जोड़े हम करते नमन,
सदा मीठी भाषा का रक्खें चलन।
अगर मीठी बोली का करते अमल-
बढ़ेंगी कभी भी नहीं दूरियाँ।।

प्रचुर भाव देवत्व पलता वहाँ,
विमल सोच मस्तिष्क निर्मल जहाँ।
इस तरह भाव-संगम-हृदय यदि बने-
त्वरित भाग जाएँ जो थीं दूरियाँ।।

घड़ी संकटों की है आती अगर,
लड़ें उससे हम सब सदा हो निडर।
एकता-मंत्र का सूत्र यदि पा लिए-
रहेंगी कभी फिर नहीं दूरियाँ।।
              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                  9919446372

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...