डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-51
संजम-नियम कृपा भगवाना।
नासहिं रोग जगत जे नाना ।।
      प्रभु कै भगति सँजीवनि नाई।
      श्रद्धा बहु जड़ ब्याधि नसाई।।
मन निरोग तुम्ह जानउ तबहीं।
उपजै जब बिराग तव उरहीं ।।
      बढ़ै सुबुधि अरु घटै बासना।
      राम-भगति-जल-ग्यान चाहना।।
श्रुतिहिं-पुरान-ग्रंथ सभ कहहीं।
राम-भगति बिनु सुख नहिं लहहीं।।
      होइ असंभव संभव बरु जग।
       मिलै न सुख बिनु राम-भगति खग।।
मथे बारि बरु घृत जग पावै।
सिकत पेरि बरु तेल लगावै।।
      प्रगटै पावक बरु हिम-खंडा।
       करै नास तम भानु प्रचंडा।।
पाथर मूलहिं उपजै फूला।
भानु उगै पच्छिम प्रतिकूला।
      पर न होहि खगेस कल्याना।
      बिनू कृपा राम भगवाना ।।
दोहा-राम-कृपा जग बहु प्रबल,भगति प्रबल प्रभु राम।
        महिमा गावैं चतुर जन,पावहिं ते सुख-धाम ।।
        राम क चरित जल-निधि इव, जल अथाह नहिं पार।
        तैरत रह प्रभु-चरित-जल, मिलहीं रतन अपार ।।
                       डॉ0हरि नाथ मिश्र
                        9919446372

 *दोहे*(मादकता/मानवता)
होली के हुड़दंग में,मादकता अधिकाय।
रहे मनुजता शेष तो,होली परम सुहाय।।

उभय बीच संबंध मधु,बहुत कठिन है मीत।
स्नेह-रज्जु से यदि बँधें,बने मधुर जग-गीत।।

मादकता ने ही जना, रावण जैसा नीच।
जिसके ही उत्पात से,भरा लोक-सर कीच।।

पुनि आए प्रभु राम ले, मानवता-हथियार।
मादकता को कुचल कर,किया लोक-उद्धार।।

होली के हुड़दंग में, दोनों का रख ध्यान।
मने अगर त्यौहार यह, बढ़े पर्व - सम्मान।।

होली के त्यौहार पर, मिलें गले दो यार।
रिपुता को सब भूलकर,करें शत्रु-सत्कार।।

होली-पावक पावनी, करे भस्म अभिमान।
मादकता को भी जला,दे मानव को ज्ञान।।
             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                  9919446372

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