*गीत*(16/16)
नहीं चैन से सोने देती,
याद पिया की मुझे सताए।
ऊपर से पपिहा की पिव-पिव-
तन-मन मेरे आग लगाए।।
घर-आँगन-चौबारा सूना,
सूना लगता है जग सारा।
सुनो, याद में तेरी साजन,
बहती रहती अश्रु की धारा।
चंद्र-चंद्रिका जग को भाती-
मुझको चंदा नहीं सुहाए।।
तन-मन मेरे आग लगाए।।
लख कर सखियाँ मुझको कहतीं,
बोलो,तुमको हुआ है क्या?
उनसे कैसे यह मैं कह दूँ,
याद तुम्हारी सताए पिया?
पर माथे की रूठी बिंदिया-
सबको सारा राज बताए।।
तन-मन मेरे आग लगाए।।
रात बिताऊँ जाग-जाग कर,
दिन में राह निहारूँ तेरी।
बाहों में आ भर लो बालम,
यह है अब तो चाहत मेरी।
सायक कुसुम धनुष अनंग ले-
सर-सर सायक प्रखर चलाए।।
तन-मन मेरे आग लगाए।।
कली चमन में खिली देख कर,
भौंरे उन पर मर-मिट जाएँ।
सरसों फूली पीली-पीली,
देख हृदय सबके ललचाएँ।
पीली चुनरी पहन प्रकृति भी-
लगती रह-रह मुझे चिढ़ाए।।
तन-मन मेरे आग लगाए।।
आकर दर्शन दे दो साजन,
तकें नैन ये राहें तेरी।
रहा न जाए अब तो मुझसे,
फैली हैं ये बाहें मेरी।
जीवन का है नहीं भरोसा-
जलता दीपक कब बुझ जाए??
तन-मन मेरे आग लगाए।
याद पिया की मुझे सताए।।
"©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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