सृजन
धर्म है जिंदगी का सृजन ही सृजन,
प्रेम से रह के कर लें दिलों का मिलन।
आज हैं हम यहाँ कल न जाने कहाँ-
कर सृजन आज ही कर लें पूरा सपन।।
जन्म लेकर धरा पे यहाँ जो रहे,
वादा अपना निभाए भले दुख सहे।
बड़े धोखे मिले,कर्म रत ही रहे-
बस सृजन ही रहा उनका प्यारा व्यसन।।
चिंतक-साधक-उपासक जो भी रहे,
सबने कर्तव्य अपना निभाया यहाँ।
कष्ट आया,उसे झेलकर हो मुदित-
वे किए हैं सृजन,रख हृदय में लगन।।
बात बिगड़ी बनाया उन्होंने सदा,
कर्ज धरती का सबने किया है अदा।
कभी भी न प्राणों की चिंता किए-
अपने दायित्व का वे किए हैं वहन।।
सृजन लक्ष्य जिसका रहा है यहाँ,
है हुआ नाम उसी का हमेशा यहाँ।
संत-साधक-तपस्वी यही तो किए-
साधना-अग्नि में तप किए हैं सृजन।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
*कुण्डलिया*
मिलता है सुख प्रेम से,बनता बिगड़ा काम,
करें प्रेम हम मिल सभी,इसमें लगे न दाम।
इसमें लगे न दाम,बने जग सुंदर सारा,
बने यही सुखधाम,बहे मधुमय रस-धारा।
कहें मिसिर हरिनाथ फूल है सुख का खिलता,
हों रक्षक भगवान,अति आनंद है मिलता।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
*कुण्डलिया*
कहना बड़ों का मान लें,इसमें है कल्याण,
उनसे मिलती सीख जो,होती जीवन-त्राण।
होती जीवन-त्राण,सीख से अनुभव बढ़ता,
अनुभव देता मान,शान की राहें गढ़ता।
कहें मिसिर हरिनाथ,अगर है सुख से रहना,
मानो प्यारे मीत, सदा बूढ़ों का कहना ।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
*कुण्डलिया*
मिलता है सुख प्रेम से,बनता बिगड़ा काम,
करें प्रेम हम मिल सभी,इसमें लगे न दाम।
इसमें लगे न दाम,बने जग सुंदर सारा,
बने यही सुखधाम,बहे मधुमय रस-धारा।
कह मिश्रा हरिनाथ फूल है सुख का खिलता,
हों रक्षक भगवान,अति आनंद है मिलता।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
*कुण्डलिया*
कहना बड़ों का मान लें,इसमें है कल्याण,
उनसे मिलती सीख जो,होती जीवन-त्राण।
होती जीवन-त्राण,सीख से अनुभव बढ़ता,
अनुभव देता मान,शान की राहें गढ़ता।
कह मिश्रा हरिनाथ,अगर है सुख से रहना,
मानो प्यारे मीत, सदा बूढ़ों का कहना ।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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