डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 सृजन

धर्म है जिंदगी का सृजन ही सृजन,

प्रेम से रह के कर लें दिलों का मिलन।

आज हैं हम यहाँ कल न जाने कहाँ-

कर सृजन आज ही कर लें पूरा सपन।।


जन्म लेकर धरा पे यहाँ जो रहे,

वादा अपना निभाए भले दुख सहे।

बड़े धोखे मिले,कर्म रत ही रहे-

बस सृजन ही रहा उनका प्यारा व्यसन।।


 चिंतक-साधक-उपासक जो भी रहे,

सबने कर्तव्य अपना निभाया यहाँ।

कष्ट आया,उसे झेलकर हो मुदित-

वे किए हैं सृजन,रख हृदय में लगन।।


बात बिगड़ी बनाया उन्होंने सदा,

कर्ज धरती का सबने किया है अदा।

कभी भी न प्राणों की चिंता किए-

अपने दायित्व का वे किए हैं वहन।।


सृजन लक्ष्य जिसका रहा है यहाँ,

है हुआ नाम उसी का हमेशा यहाँ।

संत-साधक-तपस्वी यही तो किए-

साधना-अग्नि में तप किए हैं सृजन।।

           डॉ0हरि नाथ मिश्र

            9919446372

 *कुण्डलिया*

मिलता है सुख प्रेम से,बनता बिगड़ा काम,

करें प्रेम हम मिल सभी,इसमें लगे न दाम।

इसमें लगे न दाम,बने जग सुंदर सारा,

बने यही सुखधाम,बहे मधुमय रस-धारा।

कहें मिसिर हरिनाथ फूल है सुख का खिलता,

हों रक्षक भगवान,अति आनंद  है मिलता।।

             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                 9919446372

        

             *कुण्डलिया*

कहना बड़ों का मान लें,इसमें है कल्याण,

उनसे मिलती सीख जो,होती जीवन-त्राण।

होती जीवन-त्राण,सीख से अनुभव बढ़ता,

अनुभव देता मान,शान की राहें गढ़ता।

कहें मिसिर हरिनाथ,अगर है सुख से रहना,

मानो प्यारे मीत, सदा बूढ़ों का कहना ।।

         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

              9919446372


*कुण्डलिया*

मिलता है सुख प्रेम से,बनता बिगड़ा काम,

करें प्रेम हम मिल सभी,इसमें लगे न दाम।

इसमें लगे न दाम,बने जग सुंदर सारा,

बने यही सुखधाम,बहे मधुमय रस-धारा।

कह मिश्रा हरिनाथ फूल है सुख का खिलता,

हों रक्षक भगवान,अति आनंद  है मिलता।।

             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                 9919446372

        

             *कुण्डलिया*

कहना बड़ों का मान लें,इसमें है कल्याण,

उनसे मिलती सीख जो,होती जीवन-त्राण।

होती जीवन-त्राण,सीख से अनुभव बढ़ता,

अनुभव देता मान,शान की राहें गढ़ता।

कह मिश्रा हरिनाथ,अगर है सुख से रहना,

मानो प्यारे मीत, सदा बूढ़ों का कहना ।।

         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

              9919446372

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