परिवर्तन
लगीं हैं बहने नदियाँ अब तो,निर्मल-निर्मल नीर लिए,
चंद्र-चंद्रिका छिटके नभ में, अब तो धवल अभीर हुए।
बरगद-पीपल-आम्र-नीम तरु लगते निखरे-नखरे हैं-
पर्यावरण-प्रदूषण गायब, शीघ्र हुआ जग-पीर लिए।।
लगा है दिखने अब तो हिमालय दूर देश से अपने,
धूल-गंदगी लगीं हैं छँटने, करतीं पूर्ण सभी सपने।
लगतीं जो थीं सकल दिशाएँ, धुँधली सी अति धूमिल-
हो आलोकित हुईं उजागिर रुचिर धवलिमा तीर लिए।।
गाँव की गड़ही-ताल-पोखरे,झीलें जल से भरन लगीं,
जल-सिंचित समयोचित फसलें,खेतों में अब उगन लगीं।
कृषि-प्रेमी हों प्रमुदित मन से निरख फसल निज धन्य रहें-
रखें नित्य घर-द्वार स्वच्छ,मन निर्मल,हिय अति धीर लिए।।
समय नियंत्रण-नियमन का कुछ ऐसा ही तो आ ही गया,
हुए सतर्क सब जन कुछ ऐसे, नियमन सबको भा ही गया।
नियमन और नियंत्रण तो ही अपनी जीवन-पद्धति है-
आज उसी को लगे हैं करने ग्रहण सभी मन थीर लिए।।
शिक्षा-दीक्षा-नव तकनीकें,नव विधान,नव सोच प्रखर,
नई दृष्टि सँग नित मानव की,गई सोच है पूर्ण निखर।
शोर-शराबा,हल्ला-गुल्ला,भारी भीड़ की नीति गई-
नव संस्कृति अब दस्तक दी है,नव प्रभात गम्भीर लिए।।
राजनीति के नायक-चिंतक जितने साधक-शिक्षक हैं,
सब हिमायती परिवर्तन के,सब नव सूर्य समर्थक हैं।
अब नव भारत नव बिहान ले,नवल गगन से है उतरा-
विश्व-पटल पर छा जाएगा निज सीना बलवीर लिए।।
©डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें