*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-39
राम-नाम-गुन अमित-अपारा।
पावहिं संभु-सेष नहिं पारा।।
जइस असीम-अनंत अकासा।
महिमा राम अनंत-अनासा।।
प्रभु-प्रकास कोटि सत भानू।
पवन कोटि सत बल प्रभु जानू।।
कोटिक सत ससि-सीतलताई।
अरबन धूमकेतु-प्रभुताई ।।
प्रभू अनंत-अगाध-अथाहा।
तीरथ कोटिक सुचि नर नाहा।।
इस्थिर-अचल कोटि हिमगिरि सम।
प्रभु गँभीर सत कोटि सिंधु सम ।।
सकल मनोरथ पुरवहिं नाथा।
कोटिक कामधेनु रघुनाथा।।
कोटिन्ह ब्रह्मा,कोटिन्ह सारद।
कोटिन्ह बिषनू,रुद्र बिसारद।।
सुनहु गरुड़ रामहिं प्रभुताई।
निरुपम-अकथ नाथ-निपुनाई।।
धनकुबेर सत कोटि समाना।
बहु प्रपंच माया भगवाना।।
प्रभु-गुन-सागर-थाह न मिलई।
यहिं तें भजन राम कै करई ।।
काग-बचन सुनि मगन खगेसा।
तासु चरन छूइ कहै नरेसा।।
बिनु गुरु ग्यान न हो भगवाना।
तुम्ह सम गुरू पाइ मैं जाना।।
बिनु गुरु-कृपा न भव-निधि पारा।
जा न सकहिं जन यहि संसारा।।
संसय-ब्याल करालहि काटा।
बिष-प्रभाव कारन सन्नाटा।।
जानउ मैं नहिं प्रभु-प्रभुताई।
मोहें तुम्ह सम गुरू बताई।।
कृपा तुम्हार भे मोह-बिनासा।
प्रभु-प्रति प्रेम जगायो आसा।।
जाना सभ रहस्य प्रभु रामा।
राम अनंत-अखंड-बलधामा।।
दोहा-हे सर्वग्य भुसुंडि गुरु,तव चरनन्ह मन लाग।
मोहिं बतावउ आजु तुम्ह,पायो कस तन काग।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें