डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-39

राम-नाम-गुन अमित-अपारा।

पावहिं संभु-सेष नहिं पारा।।

      जइस असीम-अनंत अकासा।

      महिमा राम अनंत-अनासा।।

प्रभु-प्रकास कोटि सत भानू।

पवन कोटि सत बल प्रभु जानू।।

     कोटिक सत ससि-सीतलताई।

     अरबन धूमकेतु-प्रभुताई ।।

प्रभू अनंत-अगाध-अथाहा।

तीरथ कोटिक सुचि नर नाहा।।

      इस्थिर-अचल कोटि हिमगिरि सम।

      प्रभु गँभीर सत कोटि सिंधु सम ।।

सकल मनोरथ पुरवहिं नाथा।

कोटिक कामधेनु रघुनाथा।।

     कोटिन्ह ब्रह्मा,कोटिन्ह सारद।

      कोटिन्ह बिषनू,रुद्र बिसारद।।

सुनहु गरुड़ रामहिं प्रभुताई।

निरुपम-अकथ नाथ-निपुनाई।।

      धनकुबेर सत कोटि समाना।

       बहु प्रपंच माया भगवाना।।

प्रभु-गुन-सागर-थाह न मिलई।

यहिं तें भजन राम कै करई ।।

     काग-बचन सुनि मगन खगेसा।

      तासु चरन छूइ कहै नरेसा।।

बिनु गुरु ग्यान न हो भगवाना।

तुम्ह सम गुरू पाइ मैं जाना।।

     बिनु गुरु-कृपा न भव-निधि पारा।

     जा न सकहिं जन यहि संसारा।।

संसय-ब्याल करालहि काटा।

बिष-प्रभाव कारन सन्नाटा।।

     जानउ मैं नहिं प्रभु-प्रभुताई।

     मोहें तुम्ह सम गुरू बताई।।

कृपा तुम्हार भे मोह-बिनासा।

प्रभु-प्रति प्रेम जगायो आसा।।

     जाना सभ रहस्य प्रभु रामा।

      राम अनंत-अखंड-बलधामा।।

दोहा-हे सर्वग्य भुसुंडि गुरु,तव चरनन्ह मन लाग।

        मोहिं बतावउ आजु तुम्ह,पायो कस तन काग।।

                        डॉ0हरि नाथ मिश्र

                           9919446372

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