डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *कविता-दिवस*(21मार्च)

       कविता

कविता नहीं मात्र कल्पना,

भाव गहन गहराई है।

भाव-सिंधु में  कवि-मन डूबे-

यह मोती उतिराई है।।


जीवन का हर रंग घुला जब,

मिला ढंग हर सुख-दुख का।

सुबह-शाम पंछी का कलरव,

बना गान जब कवि-मुख का।

बहे जो अक्षर-सरिता बन कर-

वही सत्य कविताई है।।

कविता नहीं मात्र कल्पना,भाव-गहन गहराई है।।


गगन में उड़ता देख परिंदा,

कवि-मन उसे पकड़ लेता।

खिले फूल को देख चमन में,

झट-पट उसे जकड़ लेता।

भूखे बालक की पीड़ा में-

कविता जगह बनाई है।।

कविता नहीं मात्र कल्पना,भाव-गहन गहराई है।।



अवनि दहकती है ज्वाला से,

जब-जब अत्याचारों की।

अबला की जब अस्मत लुटती।

कुत्सित सोच-विचारों की।

बन कटार तब प्रखर लेखनी-

कविता-धार बहाई है।।

कविता नहीं मात्र कल्पना,भाव-गहन गहराई है।।


जब भी दुश्मन वार किया है,

सीमा के रखवालों पर।

वीर राष्ट्र के सैनिक अपने,

देश-भक्त मतवालों पर।

क्रांति-भाव का बन कवित्त यह-

विजयी बिगुल बजाई है।।

कविता नहीं मात्र कल्पना,भाव-गहन गहराई है।।


कवि-उर की यह भाव बहुलता,

यह उड़ान मन-भावन है।

सर्दी-गर्मी हर मौसम में,

यह तो फागुन-सावन है।

कविता की ही बोली-भाषा-

भाषा की प्रभुताई है।।

  कविता नहीं मात्र कल्पना,भाव-गहन गहराई है।

 भाव-सिंधु में कवि-मन डूबे,यह मोती उतिराई है।।

           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

              9919446372

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