।ग़ज़ल।। संख्या 24।।*
*।।काफ़िया।। आर ।।*
*।।रदीफ़।। करते हैं।।*
*मतला।*
दिल में नफरत जुबां पर प्यार करते हैं।
बहुत से लोग बस यही व्यापार करते हैं।।
*हुस्ने मतला।*
सामने तुम्हारे तो वह इकरार करते हैं।
पीठ पीछे चुपचाप से इंकार करते हैं।।
फितरत समझ पाना मुश्किल इनके खंजर की।
सामने साधकर निशाना पीछे वार करते हैं।।
ले कर चलते हैं नदी पार करवाने को।
बीच मंझधार उल्टी पतवार करते हैं।।
आस्तीन के सांप से तेरे ही बिल में छिपे हैं।
पहले मार कर फिर से होशियार करते हैं।।
*"हंस "* बन कर मसीहा पा लेते हैं यकीन तुम्हारा।
फिर तुम्हारी ही गोट से तुम्हाराआरपार करते हैं।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
8218685464
*।।ग़ज़ल।। ।। संख्या 25 ।।*
*।। काफ़िया।। आर ।।*
*।।रदीफ़।। में ।।*
प्रेम दुकान चलाता हूँ नफरत के बाज़ार में।
सकूँ बहुत मिलता है इस घाटे के भी व्यापार में।।
सलाम मिलता है हर तरफ से यारों का।
गिनती शुमार हो गई है इक़ दिलदार में।।
महोब्बत की जुबां से जीत मिल रही हर तरफ।
यकीन ही हट गया है अब किसी भी हथियार में।।
सोने चांदी का गुमां सीने से ही हट गया है।
जब से खजाना भर गया है मेरा दौलते प्यार में।।
बचा नहीं वक़्त नफ़रत के लिए जिन्दगानी में।
निकल जाता है वक़्त अब प्रेम के इकरार में।।
*"हंस"* कहते कोई दौलत जाती नहीं साथ में ऊपर।
पर महोब्बत ले जाने का हक हमारेअख्तियार में।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।*
मोब।।। 9897071046
8218685464
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें