निशा अतुल्य

कालचक्र
14.3.2021

मैं काल चक्र 
निरन्तर चलता ही रहता हूँ 
तुम करते रोकने की कोशिश मुझे
पर मैं कहाँ रुकता हूँ ।

कर्मों की गति से निर्धारण
तुम्हारे मिलने बिछड़ने के होते हैं 
कौन बच पाया मुझसे 
ले प्रभु अवतार
मेरे ही रथ पर चलतें हैं ।

राग ,विराग ,लोभ ,मोह 
सब मेरे मुझमें ही रहते हैं 
त्याग,तपस्या,सद विचार भी
मुझमें ही तो पलते हैं ।

मैं गतिशील रुक नहीं पाता
न थकता न हारा हूँ 
जिसने जानी ताकत मेरी 
उसको सब कर्मों से तारा है ।

सूर्य,चंद्र ,हवा और जल 
चलते काल संग ही है 
उद्गम और समर्पण भी 
रहता मेरे बस में ।

काल चक्र की गति निरन्तर
रोक सके न कोई इसे
काँटा पकड़ खड़ा रहे तू 
कब युग पलटे पता नहीं ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

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