सुनीता असीम

 आशिकी तुझसे करूं चाहे डगर में डर रखूं।

पार उतरूँ भावनगरी प्रेम को नौकर रखूं।

***

वो जहां का है अगर मालिक तो मैं भी दास हूं।

भीलनी से बेर भी क्यूँ आज मैं चखकर रखूँ।

***

बैर नफरत रोग हैं दुनिया जहां की भीड़ में।

भावभक्ति की खरीदी कर उसे चाकर रखूं।

***

सांवरे की है नहीं तुलना    से भी   कहीं।

वो तुम्हें अपना बनाएगा यही कहकर रखूं।

***

मैं तड़प अपनी कहूं किससे कन्हैया तुम कहो।

हर घड़ी तन मन मैं अपना हिज़्र में तपकर रखूं।

***

सुनीता असीम

१९/३/२०२१


सोए भाव दिल के जगाते नहीं हैं।

उम्मीदों की किरणें जलाते नहीं हैं।

***

जो पूरे कभी ख्वाब अपने नहीं हों।

सपन ऐसे हम भी सजाते नहीं हैं।

***

भरोसा करो जिनपे दुनिया जहां में।

वही लोग रिश्ते       निभाते नहीं हैं।

***

जिन्हें देखके जी रहे थे सदा हम।

वो नज़रें भी हमसे मिलाते नहीं हैं।

***

कसम से हैं कहते  कन्हैया मनोहर।

नज़ारे ये तुम बिन तो भाते नहीं हैं।

***

सुनीता असीम

१९/३/२०२१

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...