सुनीता असीम

 आशिकी तुझसे करूं चाहे डगर में डर रखूं।

पार उतरूँ भावनगरी प्रेम को नौकर रखूं।

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वो जहां का है अगर मालिक तो मैं भी दास हूं।

भीलनी से बेर भी क्यूँ आज मैं चखकर रखूँ।

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बैर नफरत रोग हैं दुनिया जहां की भीड़ में।

भावभक्ति की खरीदी कर उसे चाकर रखूं।

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सांवरे की है नहीं तुलना    से भी   कहीं।

वो तुम्हें अपना बनाएगा यही कहकर रखूं।

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मैं तड़प अपनी कहूं किससे कन्हैया तुम कहो।

हर घड़ी तन मन मैं अपना हिज़्र में तपकर रखूं।

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सुनीता असीम

१९/३/२०२१


सोए भाव दिल के जगाते नहीं हैं।

उम्मीदों की किरणें जलाते नहीं हैं।

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जो पूरे कभी ख्वाब अपने नहीं हों।

सपन ऐसे हम भी सजाते नहीं हैं।

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भरोसा करो जिनपे दुनिया जहां में।

वही लोग रिश्ते       निभाते नहीं हैं।

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जिन्हें देखके जी रहे थे सदा हम।

वो नज़रें भी हमसे मिलाते नहीं हैं।

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कसम से हैं कहते  कन्हैया मनोहर।

नज़ारे ये तुम बिन तो भाते नहीं हैं।

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सुनीता असीम

१९/३/२०२१

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