डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

 सद्भावों में गहरापन हो

                  (चौपाई)


सद्भावों में गहरापन हो।

दुर्भावों में बहरापन हो ।।

रहे प्रेम में नित आलापन।

दिल का मिट जाये कालापन।।


सुंदर गाँवों का जमघट हो।

मृतक भावना का मरघट हो।।

शुभ भावों का गेह बनाओ।

सब में आत्मिक नेह जगाओ।।


शोभनीय धरती का हर कण।

सुंदर बनने का सब में प्रण।।

सभी बनायें उत्तम उपवन।

कल्याणी हो सब का जीवन।।


सारस्वत साधक का मेला।

शिव-आराधक का हो रेला।।

मानवता की चलें टोलियाँ।

सब की मधुर मिठास बोलियाँ।।


जग में आये शिव परिवर्तन।

पावनता का हो संवर्धन।।

निज में हो सामूहिक चेतन ।

हो सारा जग शांतिनिकेतन।।


हर पत्थर कोमल बन जाये।

निष्ठुरता से मल बह जाये।।

क्रूर बने अति मोहक मानव।

मर जायें पृथ्वी के दानव।।


सुंदर भावों के गाँवों में।

प्रिय हरीतिमा की छाँवों में।।

रहना सीखो सत्य श्याम बन।

सद्भावों का दिव्य राम बन।।


दरिद्रता   (दोहे)


जो दरिद्र वह अति दुःखी, दीन-हीन अति छीन।

तड़पत है वह इस कदर, जैसे जल बिन मीन।।


तन -मन -धन से हीन नर, को दरिद्र सम जान।

है दरिद्र की जिंदगी, सुनसान मरु खान।।


है दरिद्र की जिंदगी, बहुत बड़ा अभिशाप।

जन्म-जन्म के पाप का, यह दूषित संताप।।


अगर संपदा चाहिये, कर संतों का साथ।

सन्त मिलन अरु हरि कृपा, का हो सिर पर हाथ।।


जिस के मन में तुच्छता,वह दरिद्र का पेड़।

है समाज में इस तरह, जिमि वृक्षों में रेड़ ।।


वैचारिक दारिद्र्य का, मत पूछो कुछ हाल।

धन के चक्कर में सदा, रहता यह बेहाल।।


धन को जीवन समझ कर, जो रहता बेचैन।

वह दरिद्र मतिमन्द अति, चैन नहीं दिन-रैन।।


डॉ०रामबली मिश्र की कुण्डलिया


चलना जिसको आ गया, वही बना इंसान।

जो चलना नहिं चाहता, वही दनुज हैवान।।

वही दनुज हैवान,  किसी को नहीं सेटता।

टेरत अपना राग, स्वयं में रहत ऐंठता।।

कहत मिश्रा कविराय, सीख लो सुंदर कहना।

मत बनना मतिमन्द, बुद्धि से सीखो चलना।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801



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