जीवन परिचय
नाम- डा0 अर्चना मिश्रा शुक्ला
पति का नाम- नागेन्द्र प्रकाश शुक्ला
स्थाई पता- 1/139 अम्बेड़कर पुरम्, आवास विकास नं0 3, कल्यानपुर, पिन कोड- 208017, उत्तर प्रदेश
फोन नं0- 7905975057, 9451281671
जन्म एवं जन्मस्थान- 20/06/1976, ग्राम लोमर, जिला- बाॅदा, उत्तर प्रदेश
शिक्षा- परास्नातक हिंदी, संस्कृत, विद्या वाचस्पति उपाधिधारक 2004, बी0एड0
व्यवसाय- शिक्षक
प्रकाशन विवरण- बालगीत, नित्या पब्लिकेशन, भोपाल
काव्यपाठ का विवरण- संस्कार भारती जहांगीराबाद, हिमालय अपडेट न्यूज, मेरी कलम से काव्य मंच रीवा, स्वर्णिम
साहित्य, महाविद्यालय स्तर पर काव्यपाठ-1994, शिवपुराण पाठ में काव्य सम्मेलन में प्रस्तुति।
अप्रकाशित रचनाएं-
1- माँ शंखुला महिमा
2- बातगीत भाग दो
3- नल दमयंती काव्यमय वृत्तान्त
4- कर्ण की काव्यमय संक्षिप्त कथा
5- युद्ध और आधुनिक काव्य
6- मेरी कहानियाँ
7- समसामयिक कविताएं
8- समसामयिक लेख आलेख
9- विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख ,आलेख ,कहानियां
कविता आदि।
पुरस्कार व सम्मान
1- सद्भावना पुरस्कार 1994
2- कला साहित्य नाट्य विज्ञान परिषद द्वारा पुरस्कृत 1995
3- सम्मान अलकरण 1996
4- क्रीड़ा कौशल सांस्कृतिक पुरस्कार 1990
5- सांस्कृतिक चेतना निर्माण पुरस्कार 1996
6- हिम रतन प्रेरणा सम्मान2021
7- नारी शक्ति सागर सम्मान 2021
8- विंध्य कलम गौरव सम्मान 2021
9- हिमालयन रत्न सृजन सम्मान 2020
10- उ० प्र० शक्तिस्वरूपा प्रणयन सम्मान 2021
**** आजादी के सपूत ****
दिल लगा बैठे थे अपने देश से
आशिकों सी वो वफा फिर कर गए
सिर उठाकर ये जिए और कह गए
सिर झुकाने की यहाँ आदत नही
ये अमर बलिदान, भारत -भूमि मे
राजगुरू ने राज ,भारत को दिया ।
सुखदेव ने सुखराह देकर चल दिया ।
ये भगत भक्ति की धारा दे गए,
ये शहादत देश हित में कर गए ।
वीरमाता के अजब ये पूत थे,
मातृभूमि में जाँ निछावर कर गए ,
भारती माँ को आजादी दे गए,
दासता की बेड़ियों को काटकर,
चूमते फाँसी का फंदा वो गए,
देश की माटी में वो चंदन बने,
भारती माँ का वो वंदन कर गए,
है नमन शत-शत ये भारत देश का,
पथ तुम्हारे हम चलें यह कह गए,
जो विरासत में हमे वो दे गए,
वीर सैनिक बन युवा धारण करें,
अब ये परिपाटी निभाते हम चलें ।
डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला
प्राथमिक शिक्षक व रचनाकार
कानपुर नगर उत्तर प्रदेश
*****माँ की सीख*****
लड़खड़ा कर गिरना
मेरी आदत नहीं ।
लड़खड़ा कर सीधे खड़ा होना,
सदा माॅ ने सिखाया ।
हौसला ऐसा बढ़ाया
कि कारवाँ चल निकला
निकला ही नही
निकला ही नही
दौड़ा
भागा और नई ऊँचाइयों को
दोनो हाँथों से पाया
पाया और लुटाया
यही तो मेरी माँ ने सिखाया ।
और गिराने वालो को!!!
अचम्भे में डाल देना
हैरत तो उनको तब हुई,
जब शमशान से उठ,
उस रुह ने
अपना नया जन्म पाया ।
अपने स्वाभिमान की खातिर
अपने असतित्व की खातिर
अपनी पहचान की खातिर
यह संघर्ष है न
यह भी मेरी माँ ने सिखाया ।
डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ता
शिक्षक व रचनाकार
कानपुर नगर उत्तर प्रदेश
+++ वर्ष की आखिरी सॉझ +++
आज का दिन तो ऐसे बीत रहा है,
जैसे बस व ट्रेन में उतरते चढ़ते लोग,
जैसे लिफ्ट में निकलते घुसते लोग,
स्टेशन मे आते जाते लोग,
पिक्चर हाल मे जाते लोग,
और देखकर निकलते लोग,
आज मन की भावुकता बढ़ गई,
जाते हुए साल मे,
कितना कुछ सुना है बेचारे इस साल ने,
कोरोना की आफत उठाए पूरा साल है,
माना कि बहुत कुछ छूटा इस साल है ,
बहुत कुछ नया करके भी गया,
बहुत कुछ नया देकर भी गया,
अब नए के स्वागत को,
सब बाँह फैलाए खड़े हैं,
मन कुछ भावुक हो चला,
ऐ जाते हुए साल,
आना और जाना ही तो सत्य है,
इस सत्य को जीना पड़ता है,
जीते हैं जीते रहेगें,
पर आज मन कुछ भावुक हो चला है ।
डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला
प्राथमिक शिक्षक व साहित्यकार
कानपुर नगर
उत्तर प्रदेश
7905975057
कविता
शीर्षक- ‘गरीबी’
घर हीन, भूमि से हीन
वो फिरते मारे-मारे
फुटपाथों को घेर
कभी उद्यानों में वह
हर सरकारी आफिस की, दीवारों से जुड़
कही हरित पट्टी पर,
वह हैं पन्नी ताने
यही सुखद उनका घर
पीढ़ी दर, पीढ़ी है
कुछ छोटे-मोटे काम करें
दो-चार रोटियों की खातिर
हर शाम झोपड़ी में लौटें
कुछ गिना-चुना सामान लिए
किरणों से अमृत कहाॅ गिरे???
उनके घर खीर न बनती है!!!
सूखी रोटी ही मिल जाएं
यह खुशनसीबी उनकी है।
सिसकी भरती माँ मिलती है
हठ बच्चे उससे करते हैं
मचल-मचल माॅ-बापू से
माँगें अपनी वो करते हैं
बेबस वत्सलता विलख रही
कह-कह अभागिनी विलख रही
ममता की रोती आॅखों में
मुस्कान अभी कैसे आए ???
जादू की छड़ी न आएगी
जो चमत्कार कर जाएगी
उनको हक उनका देना है
हर देश की जिम्मेदारी है
हम सबकी जिम्मेदारी है।
डा0 अर्चना मिश्रा शुक्ला
प्राथमिक शिक्षक व साहित्यकार
कानपुर नगर, उत्तर प्रदेश
****** बेटी ******
बेटी बचाने वालों को कभी
करीब से देखा है क्या ????
मैने तो हजारों लरजती सांसों
हॉ सांसों !!!
की कपकपाहट के साथ
एक बेटी को
बेटी बचाते देखा है ????
दुनिया की दुनियादारी में
एक नारी को अपना सम्मान बचाते देखा है
मैने एक बेटी को
एक बेटी बचाते देखा है ????
माॅ के घर से विदा हो
पति के आंगन को संवारते देखा है
जिसे परमेश्वर माना
उसकी दुत्कार , धिक्कार और तिरस्कार
साथ में तीन-तीन बेटियों का उपहार
बेटी का उपहार अकेलेदम झेला है
अपनी जिम्मेदारी से जो बाप भागा है!!!
माँ ने अकेले ही
बेटी को बचाया है
राह चलते चलते
मिला कोई अपना
जिसने बेटियो सहित
बेटी की माॅ को भी अपनाया है
वह दिन भी आया
जब बेटी पराई होती है
एक- एक कर
दीन-हीन दशा में भी
डोली पर बिठाया
इस तरह एक बेटी को बचाया
छुटकी बिटिया की बारी
और माँ - बाप की हीनता भारी
कण- कण और तृण-तृण को मोहताज खड़ी थी माई
बापू का सर नतमस्तक
सिर रखे हाँथ तो कोई
बेटी को बचाया था
उस बेटी ने उठाया
बेटी के भाग्य से
लक्ष्मी ने लक्ष्मी बरसाया
चॉदनी सी छाया
सर्वत्र फैलाया
इस तरह मैने भी एक बेटी बचाया
एक बेटी बचाया
जीवन परिचय
नाम- डा0 अर्चना मिश्रा शुक्ला
पति का नाम- नागेन्द्र प्रकाश शुक्ला
स्थाई पता- 1/139 अम्बेड़कर पुरम्, आवास विकास नं0 3, कल्यानपुर, पिन कोड- 208017, उत्तर प्रदेश
फोन नं0- 7905975057, 9451281671
जन्म एवं जन्मस्थान- 20/06/1976, ग्राम लोमर, जिला- बाॅदा, उत्तर प्रदेश
शिक्षा- परास्नातक हिंदी, संस्कृत, विद्या वाचस्पति उपाधिधारक 2004, बी0एड0
व्यवसाय- शिक्षक
प्रकाशन विवरण- बालगीत, नित्या पब्लिकेशन, भोपाल
काव्यपाठ का विवरण- संस्कार भारती जहांगीराबाद, हिमालय अपडेट न्यूज, मेरी कलम से काव्य मंच रीवा, स्वर्णिम
साहित्य, महाविद्यालय स्तर पर काव्यपाठ-1994, शिवपुराण पाठ में काव्य सम्मेलन में प्रस्तुति।
अप्रकाशित रचनाएं-
1- माँ शंखुला महिमा
2- बातगीत भाग दो
3- नल दमयंती काव्यमय वृत्तान्त
4- कर्ण की काव्यमय संक्षिप्त कथा
5- युद्ध और आधुनिक काव्य
6- मेरी कहानियाँ
7- समसामयिक कविताएं
8- समसामयिक लेख आलेख
9- विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख ,आलेख ,कहानियां
कविता आदि।
पुरस्कार व सम्मान
1- सद्भावना पुरस्कार 1994
2- कला साहित्य नाट्य विज्ञान परिषद द्वारा पुरस्कृत 1995
3- सम्मान अलकरण 1996
4- क्रीड़ा कौशल सांस्कृतिक पुरस्कार 1990
5- सांस्कृतिक चेतना निर्माण पुरस्कार 1996
6- हिम रतन प्रेरणा सम्मान2021
7- नारी शक्ति सागर सम्मान 2021
8- विंध्य कलम गौरव सम्मान 2021
9- हिमालयन रत्न सृजन सम्मान 2020
10- उ० प्र० शक्तिस्वरूपा प्रणयन सम्मान 2021
**** आजादी के सपूत ****
दिल लगा बैठे थे अपने देश से
आशिकों सी वो वफा फिर कर गए
सिर उठाकर ये जिए और कह गए
सिर झुकाने की यहाँ आदत नही
ये अमर बलिदान, भारत -भूमि मे
राजगुरू ने राज ,भारत को दिया ।
सुखदेव ने सुखराह देकर चल दिया ।
ये भगत भक्ति की धारा दे गए,
ये शहादत देश हित में कर गए ।
वीरमाता के अजब ये पूत थे,
मातृभूमि में जाँ निछावर कर गए ,
भारती माँ को आजादी दे गए,
दासता की बेड़ियों को काटकर,
चूमते फाँसी का फंदा वो गए,
देश की माटी में वो चंदन बने,
भारती माँ का वो वंदन कर गए,
है नमन शत-शत ये भारत देश का,
पथ तुम्हारे हम चलें यह कह गए,
जो विरासत में हमे वो दे गए,
वीर सैनिक बन युवा धारण करें,
अब ये परिपाटी निभाते हम चलें ।
डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला
प्राथमिक शिक्षक व रचनाकार
कानपुर नगर उत्तर प्रदेश
*****माँ की सीख*****
लड़खड़ा कर गिरना
मेरी आदत नहीं ।
लड़खड़ा कर सीधे खड़ा होना,
सदा माॅ ने सिखाया ।
हौसला ऐसा बढ़ाया
कि कारवाँ चल निकला
निकला ही नही
निकला ही नही
दौड़ा
भागा और नई ऊँचाइयों को
दोनो हाँथों से पाया
पाया और लुटाया
यही तो मेरी माँ ने सिखाया ।
और गिराने वालो को!!!
अचम्भे में डाल देना
हैरत तो उनको तब हुई,
जब शमशान से उठ,
उस रुह ने
अपना नया जन्म पाया ।
अपने स्वाभिमान की खातिर
अपने असतित्व की खातिर
अपनी पहचान की खातिर
यह संघर्ष है न
यह भी मेरी माँ ने सिखाया ।
डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ता
शिक्षक व रचनाकार
कानपुर नगर उत्तर प्रदेश
+++ वर्ष की आखिरी सॉझ +++
आज का दिन तो ऐसे बीत रहा है,
जैसे बस व ट्रेन में उतरते चढ़ते लोग,
जैसे लिफ्ट में निकलते घुसते लोग,
स्टेशन मे आते जाते लोग,
पिक्चर हाल मे जाते लोग,
और देखकर निकलते लोग,
आज मन की भावुकता बढ़ गई,
जाते हुए साल मे,
कितना कुछ सुना है बेचारे इस साल ने,
कोरोना की आफत उठाए पूरा साल है,
माना कि बहुत कुछ छूटा इस साल है ,
बहुत कुछ नया करके भी गया,
बहुत कुछ नया देकर भी गया,
अब नए के स्वागत को,
सब बाँह फैलाए खड़े हैं,
मन कुछ भावुक हो चला,
ऐ जाते हुए साल,
आना और जाना ही तो सत्य है,
इस सत्य को जीना पड़ता है,
जीते हैं जीते रहेगें,
पर आज मन कुछ भावुक हो चला है ।
डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला
प्राथमिक शिक्षक व साहित्यकार
कानपुर नगर
उत्तर प्रदेश
7905975057
कविता
शीर्षक- ‘गरीबी’
घर हीन, भूमि से हीन
वो फिरते मारे-मारे
फुटपाथों को घेर
कभी उद्यानों में वह
हर सरकारी आफिस की, दीवारों से जुड़
कही हरित पट्टी पर,
वह हैं पन्नी ताने
यही सुखद उनका घर
पीढ़ी दर, पीढ़ी है
कुछ छोटे-मोटे काम करें
दो-चार रोटियों की खातिर
हर शाम झोपड़ी में लौटें
कुछ गिना-चुना सामान लिए
किरणों से अमृत कहाॅ गिरे???
उनके घर खीर न बनती है!!!
सूखी रोटी ही मिल जाएं
यह खुशनसीबी उनकी है।
सिसकी भरती माँ मिलती है
हठ बच्चे उससे करते हैं
मचल-मचल माॅ-बापू से
माँगें अपनी वो करते हैं
बेबस वत्सलता विलख रही
कह-कह अभागिनी विलख रही
ममता की रोती आॅखों में
मुस्कान अभी कैसे आए ???
जादू की छड़ी न आएगी
जो चमत्कार कर जाएगी
उनको हक उनका देना है
हर देश की जिम्मेदारी है
हम सबकी जिम्मेदारी है।
डा0 अर्चना मिश्रा शुक्ला
प्राथमिक शिक्षक व साहित्यकार
कानपुर नगर, उत्तर प्रदेश
****** बेटी ******
बेटी बचाने वालों को कभी
करीब से देखा है क्या ????
मैने तो हजारों लरजती सांसों
हॉ सांसों !!!
की कपकपाहट के साथ
एक बेटी को
बेटी बचाते देखा है ????
दुनिया की दुनियादारी में
एक नारी को अपना सम्मान बचाते देखा है
मैने एक बेटी को
एक बेटी बचाते देखा है ????
माॅ के घर से विदा हो
पति के आंगन को संवारते देखा है
जिसे परमेश्वर माना
उसकी दुत्कार , धिक्कार और तिरस्कार
साथ में तीन-तीन बेटियों का उपहार
बेटी का उपहार अकेलेदम झेला है
अपनी जिम्मेदारी से जो बाप भागा है!!!
माँ ने अकेले ही
बेटी को बचाया है
राह चलते चलते
मिला कोई अपना
जिसने बेटियो सहित
बेटी की माॅ को भी अपनाया है
वह दिन भी आया
जब बेटी पराई होती है
एक- एक कर
दीन-हीन दशा में भी
डोली पर बिठाया
इस तरह एक बेटी को बचाया
छुटकी बिटिया की बारी
और माँ - बाप की हीनता भारी
कण- कण और तृण-तृण को मोहताज खड़ी थी माई
बापू का सर नतमस्तक
सिर रखे हाँथ तो कोई
बेटी को बचाया था
उस बेटी ने उठाया
बेटी के भाग्य से
लक्ष्मी ने लक्ष्मी बरसाया
चॉदनी सी छाया
सर्वत्र फैलाया
इस तरह मैने भी एक बेटी बचाया
एक बेटी बचाया
डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला
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