श्री अटल जी को समर्पित मेरी कविता
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बिगड़ी बात बन गई
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बन गई बन गई
बिगड़ी बात बन गई
पहले तो वे हमसे नाराज थे
छुपा रहे जैसे कोई राज थे
एक रोज वे इत्तेफाक से मिले
मिट गए सारे शिकवे गिले
ऐसा लगा जैसे सांसे थम गई
बन गई बन गई
बिगड़ी बात बन गई
न वे आगे बढ़े
ना कुछ हमने कहा
नजर फिर से मिली
दिल का गम तो गया
ना होश उनको रहा
न सोच मेरी रही
होंठ उनके खुले
बात मैंने कहीं
वह आगोश में आ
सांसो में रम गई
बन गई बन गई
बिगड़ी बात बन गई
डॉ बीके शर्मा
उच्चैन भरतपुर राजस्थान
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