एस के कपूर श्री हंस

 ।।ग़ज़ल।।  ।।संख्या  32।।*

*।।काफ़िया।। आह।।*

*।।रदीफ़।।देखना चाहता हूँ।।*

*बहर   122-122-122-122*

*संशोधित।।।*

1

तिरी चाह को    देखना  चाहता हूँ।

हद-ए-वाह को   देखना चाहता हूँ।।

2

तू  हमराही है मेरा हमजोली भी है। 

इसी थाह को  देखना     चाहता हूँ।।

3.

ग़रीबों की आहों में कितना असर है। 

उसी आह को  देखना      चाहता हूँ।।

4

मज़ा इंतज़ारी में आता     है कैसा। 

तिरी  राह को देखना     चाहता हूँ।।

5

गुज़रती है क्या *हंस* उस पर जहां में।

मैं गुमराह    को देखना       चाहता हूँ।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।।।।             9897071046

                           8218685464


।।ग़ज़ल।।   संख्या 33 ।।

*।। काफ़िया।।  तोड़ने,मोड़ने,छोड़ने*,

*जोड़ने आदि।।*

*।।रदीफ़।। पड़े मुझे।।*

*बहर    221-2121-1221-212*

1

अपने  उसूल उसके लिए तोड़ने पड़े ।

ग़लती नहीं थी हाथ मगर जोड़ने पड़े ।।

2

दूजों को आबोदाने कि दिक्कत न पेश हो ।

अपने हक़ो के सिक्के सभी छोड़ने पड़े ।।

3

मुफ़लिस के घर भी जाये मिरे घर की रौशनी।

अपने  घरौंदे ख़ुद ही मुझे फोड़ने पड़े ।।

4

तकलीफ़ हो किसी को न मेरे वजूद से ।

यह सोच अपने शौक मुझे छोड़ने  पड़े ।।

5

जिस रहगुज़र से *हंस* था मुश्किल भरा सफ़र ।

उस रास्ते पे अपने क़दम मोड़ने पड़े ।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।।।       9897071046

                     8218685464


।।ग़ज़ल।।  ।।संख्या    34।।*

*।।काफ़िया।। आर ।।*

*।।रदीफ़।। होती है  ।।*


1    *मतला*

शब्द की महिमा अपार      होती है।

लिये शक्ति का इक़ भंडार      होती है।।

2    *हुस्ने मतला*

हर शब्द की अपनी इक़ पैनी धार   होती है।

कि शब्द शब्द से ही पैदा खार होती है।।

3    *हुस्ने मतला*

शब्दों से ही   बात इक़रार      होती है।

शब्दों से ही कभी बात इंकार होती है।।

4  *हुस्ने मतला*

शब्द की मिठास लज़ीज़ बार बार होती है।

कभी यह तीखी तेज़ आर पार    होती है।।

5

किसी शब्द का महत्व कम मत आँकना कभी।

शब्द से शुरू बात फिर विचार होती है।।

6

हर शब्द बहुत नाप तोल   कर   ही   बोलें।

हर शब्द की अपनी एक रफ्तार होती है।।

7

शब्दों का खेल बहुत निराला होता है।

एक ही शब्द बनती व्यपार, व्यवहार होती है।।

8

शब्दों से खेलें नहीं कि होते हैं नाजुक।

कभी इनकी मार जैसे तलवार होती है।।

9

*हंस* शब्द महिमा  बखान  को शब्द कम हैं।

शब्दों की दुनियाअपने में एक संसार होती है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"

*बरेली।।।*

मोब।।             9897071046

                      8218685464

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