*।।विषय।।मिलन।।*
*।।रचना शीर्षक।।*
*।।धैर्य,बुद्धि,विवेक,विश्वास का*
*मिलन ही जीवन है।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
जिन्दगी की तस्वीर में
हमको ही रंग भरना है।
अपनी तकदीर से भी
हमको जंग करना है।।
मुक़द्दर की कलम हाथ
हमारे है अपने ही।
जीवन में हमें अपने ही
ढंग से बढ़ना है।।
2
बुद्धि विवेक वालों को
ही याद किया जाता है।
धैर्यवान को ही जीवन
में साथ दिया जाता है।।
धन बल सदा काम
आते नहीं किसी के भी।
नफ़रत से तो आदमी
बर्बाद जिया जाता है।।
3
पत्थर सा तराश कर
हीरा बनना पड़ता है।
ज्ञान की रोशनी से भी
भरपूर करना पड़ता है।।
भीतर छिपी प्रतिभा
है निखारनी पड़ती।
धैर्य विवेक का पुट
खूब भरना पड़ता है।।
4
बुरी स्तिथि में आदमी
को संभलना चाहिये।
अच्छी स्तिथि में नहीं
उसे उछलना चाहिये।।
सच झूठ परखने की
चाहिये तासीर रखनी।
बस नित प्रतिदिन को
व्यक्ति सुधरना चाहिये।।
*रचयिता।।एस के कपूर " श्री हंस*"
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
8218685464
*।।ग़ज़ल।। ।।संख्या 51 ।।*
*।।काफ़िया।। आस।।*
*।।रदीफ़।। नहीं चाहिये।।*
1
दीन हीन का परिहास नहीं चाहिये।
असत्य के ऊपर विश्वास नहीं चाहिये।।
2
संवेदनशीलता कदापि कम नहीं हो।
धन बल वैभव भोग विलास नहीं चाहिये।।
3
मूल्यों का कदापि पतन न हो जीवन में।
मद्यपान मे डूबा उल्लास नहीं चाहिये।।
4
हर घर को मिलेगा उजाला और निवाला।
हमें ऐसा झूठ आस पास नहीं चाहिये।।
5
खत्म हो जाये जहाँ पर दर्द का ही रिश्ता।
हमें ऐसा कोई रिश्ता शाबास नहीं चाहिये।।
6
अमीरी गरीबी का जहाँ उड़ता हो मजाक।
हमें ऐसा मानवता का उपहास नहीं चाहिये।।
7
स्वार्थ के ही हों जहाँ पर सब रिश्ते नाते।
प्रेम सौहार्द का हमें ऐसा खलास नहीं चाहिये।।
8
छल कपट झूठ अदाकारी से भरा हुआ।
इंसानियत का काला इतिहास नहीं चाहिये।।
9
*हंस* हमें चाहिये सवेदनायों से पूर्ण मनुष्य।
हमें दिखावटी आदमी खास नहीं चाहिये।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
8218685464
*।।ग़ज़ल।। ।।संख्या 51 ।।*
*।।काफ़िया।। आस।।*
*।।रदीफ़।। नहीं चाहिये।।*
1
दीन हीन का परिहास नहीं चाहिये।
असत्य के ऊपर विश्वास नहीं चाहिये।।
2
संवेदनशीलता कदापि कम नहीं हो।
धन बल वैभव भोग विलास नहीं चाहिये।।
3
मूल्यों का कदापि पतन न हो जीवन में।
मद्यपान मे डूबा उल्लास नहीं चाहिये।।
4
हर घर को मिलेगा उजाला और निवाला।
हमें ऐसा झूठ आस पास नहीं चाहिये।।
5
खत्म हो जाये जहाँ पर दर्द का ही रिश्ता।
हमें ऐसा कोई रिश्ता शाबास नहीं चाहिये।।
6
अमीरी गरीबी का जहाँ उड़ता हो मजाक।
हमें ऐसा मानवता का उपहास नहीं चाहिये।।
7
स्वार्थ के ही हों जहाँ पर सब रिश्ते नाते।
प्रेम सौहार्द का हमें ऐसा खलास नहीं चाहिये।।
8
छल कपट झूठ अदाकारी से भरा हुआ।
इंसानियत का काला इतिहास नहीं चाहिये।।
9
*हंस* हमें चाहिये सवेदनायों से पूर्ण मनुष्य।
हमें दिखावटी आदमी खास नहीं चाहिये।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
8218685464
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