विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल


हमारे फ़ैसले होते कड़े हैं

अगरचे फ़ायदे इसमें बड़े हैं


जहाँ तुमने कहा था फिर मिलेंगे

उसी रस्ते में हम अब तक खड़े हैं


सुनाकर भी इन्हें हासिल नहीं कुछ

हमारे रहनुमा चिकने घड़े हैं


छुड़ाया लाख पर पीछा न छूटा

गले वो इस तरह आकर पड़े हैं


किसी के तंज़ छू पाये न हमको 

कि अपने क़द में हम इतने बड़े हैं


अमीरों से उन्हें डरते ही देखा

ग़रीबी से जो रात-ओ-दिन लड़े हैं


जहाँ कह दो वहाँ चल देंगे *साग़र*

यहाँ पर कौन से पुरखे गड़े हैं


🖋विनय साग़र जायसवाल

11/3/19

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