सम्राट सिंह

 एक कविता ऐसा भी...


व्यंग और पर्व का समावेश करने की कोशिश


प्रबुद्ध लोगों से निवेदन की आकलन जरूर करें


भलही के भाग भइल 

एहि साल फाग में

मेहरी हेरा गइली

महंगाई के आग में

अच्छा दिन ओझल भइल

अखियां के ओट से

लोरवा अब गिरेलागल

महंगाई के चोट से

सभे लागल बेचे में 

अब देशओ बेचाई

देश बेंच के पईसा मिली

तबे नु अच्छा दिन आई

कहे सम्राट सुन एक राग में

भलही के भाग भइल 

एहि साल फाग में

मेहरी हेरा गइली

महंगाई के आग में।।

रंग भइल फीका

उमंग भइल फीका

तेल मसाला के महंगाई से

स्वाद भइल फीका

आइल बा चुनाव तब

माहौलवा गर्मात बा

जहाँ जहाँ होखत बा

कोरोना भाग जात बा

कहे सम्राट सुन एहि फाग में

होली नाही मानी

बीत जाइ भागम भाग में

भलही के भाग भइल 

एहि साल फाग में

मेहरी हेरा गइली

महंगाई के आग में।।

रात अब दिन लागे

दिन अब रात कहाता

जउन ओकर मालिक कहे

पीछे सब हुवाँ हुवाँ चिल्लाता

लंबा लंबा फेके में

प्रतियोगिता बा अइसन बुझाता

केहू 15 लाख देत बा

त केहू के आलू से सोना निकलाता

कहे सम्राट सुन बस एके राग में

भलही के भाग भइल 

एहि साल फाग में

मेहरी हेरा गइली

महंगाई के आग में।।

डीजल पेट्रोल गैस मसाला

ई सब पर महंगाई बा

नेता लोग के छूट मिलल बा

आम जनता पर कड़ाई बा

अबकी होली सुखल जाइ

गरीबवन के समाज के

ढाका भर के लानत बाटे

अच्छा दिन वाला राज के

कहे सम्राट सुन बस एके राग में

भलही के भाग भइल 

एहि साल फाग में

मेहरी हेरा गइली

महंगाई के आग में।।




©️सम्राट की कविताएं

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