उषा जैन

विषय -होली

रूत बसंती मन बसंती 
तने बसंती फागुन की मस्ती
मदमाता फागुन  आ गया
फागुनी खुमार चढ़ा गया

टेसू कनेर के फूल है महके
लाल पलाश सब और है दहके
केसरिया सा मन हो गया 
मेरा अंग अंग महका गया 
मदमाता फागुन आ गया

ढोल नगाड़े मृदंग है बचते
फागुनी गीत हवा में गूंजे
छम छम गोरी गोरी ने पायल छनकाई
झूम रही है सारी  अमराई
कोयल भी फिरती है बौराई
एक नशा  सा हवा में छा गया
 मदमाता फागुन आ गया

आज न छोटा बड़ा है कोई
झूम रहे सब लोग लुगाई
आज न कोई राजा प्रजा है
खेल रहे रंग बनके हमजोली
रंगो के बहाने छेड़े भाभी को
देवर भी आज करे मनमानी
भाभी के गालों को रंग गया
मदमाता फागुन आ गया

तुम भी आ जाओ मेरे रंगरसिया
मुझ पर भी रंग बरसा दो मनबसिया
सूखी फीकी है मोरी चुनरिया
तुझे बिन रहा ना जाए सांवरिया
मन की अगन और भी दहका गया 
मदमाता फागुन आ गया गया

पीली पीली चुनर ओढ़ कर
अवनी भी आज रंग बरसाए
हर सजनी अपने सजना के संग
गीत प्यार के झुमके गाए
आज न  कोई तन्हा रह जाए
दुश्मन को भी गले लगाएं
रूठे हुए को आज मना ले 
प्रेम प्यार से तन मन रंग ले 
मन का बैर भाव  मिटा गया
मदमाता फागुन आ गया

स्वरचित उषा जैन कोलकाता
28/3/2021

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