क्या लिखूं
कलम हूॅं मुरीद तेरी
तू जो कहे वही बात लिखूं
भीगे हुए जज्बात या
रुठे हुए हालात लिखूं
बिकेंगे गीत किस तरह के
वो अल्फाज लिखूं
तू ही बता ए सफा
आखिर तुझ पर क्या लिखूं
कई बार सोचा स्वयं मुख्तार हूं,लिख दूं जो मन आए
मगर......
सोच में पड़ गई के आखिर
किसकी कहानी ,किसकी
करुणा के गीत के लिखूं
कौन है आज यहाॅं खुश जिनके गुदगुदाते कहकहे लिखूं
जीत का महाकाव्य या
कालजयी कोई गाथा लिखूं
भूली बिसरी यादों के
अफसाने या बीती जवानी की
कोई कहानी लिखूं
पढ़ेगा कौन बता ,किसके
लिए लिखूं
लिखे हुए शब्द बंद सफों में
इक दूजे की रगड़ से ही
घायल हो जाते हैं
या बिन खुले ही जिल्दों में
दीमक की खुराक
बन जाते हैं
पढ़ेगा कौन बता
किसके लिए लिखूं
स्वर्ण की कलम हूं चाहे
लकड़ी की ही सही
आखिर तो चंद सिक्कों
के लिए ही बिकूं*
हॉं सफे की मैं सफा मेरी
जरुरत है
चलो सोचते हैं मिलकर
क्यों,क्या,कैसे ,कब, लिखूं
कलम हूं मुरीद तेरी मैं
तू जो कहे वही बात लिखूं।
(अपवाद को छोड़ कर अधिकांश कलम बेच देते हैं ,किसी के निजत्व पर प्रहार नहीं है🙏)
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