ग़ज़ल-
1.
आपकी जबसे इनायत हो गयी है
ज़िन्दगानी ख़ूबसूरत हो गयी है
2.
तेरी आँखों में जो शोखी देखता हूँ
मुझको उससे ही मुहब्बत हो गयी है
3.
क्या कहूँ मैं इस दिल-ए बेज़ार को अब
हर नफ़स तेरी ज़रूरत हो गयी है
4.
तेरी हर तस्वीर मुझसे कहती है यह
मेरी दुनिया तुझसे जन्नत हो गयी है
5.
रोज़ मिल जाते हैं मिलने के बहाने
किस कदर कुदरत की रहमत हो गयी है
6.
चाहता हूँ पास में बैठे रहो तुम
क्या करूँ इस दर्जा उल्फ़त हो गयी है
7.
आजकल कहने लगा है आइना भी
तेरी मेरी एक सूरत हो गयी है
8.
हो रहे उस और से *साग़र* इशारे
इसलिए मुझ में भी हिम्मत हो गयी है
🖋️विनय साग़र जायसवाल
3/3/2021
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