सरस्वती-वन्दना
हे हँसवाहिनी! मातु शारदा!
तुम ज्ञानदा हो मुझे ज्ञान तू दो।
तेरी हो जिस पर कृपा दृष्टि,
उसका व्यक्तित्व विभूषित हो ।।
हे हँसवाहिनी-----------
विमला भी तुम्हीं शारदा हो,
ज्ञान की देवी वागीश तुम्हीं।
जिह्वा पर जिसके उतर गयी,
बन जाये कालिदास वही।।
हे हँसवाहिनी---------
मुझको है धन की भूख नहीं,
वश तेरी कृपा बनी जो रहे।
तुमसे ही सब कुछ साधित है,
तूँ है तो जीवन धन्य बने।।
हे हँसवाहिनी------------
----- रचनाकार----
सुरेश लाल श्रीवास्तव
प्रधानाचार्य
राजकीय इण्टर कॉलेज
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर
उत्तर प्रदेश 224122
मोबाइल न. 09455141000
अर्थ-प्रेम और दिली प्रेम अर्थ से प्रेम जब जब पराजित हुआ,
रिश्ते-नातों का दामन कलंकित हुआ।
दिल धड़कता नहीं अब किसी के लिए,
अर्थ ने इसको जकड़ा स्वयं के लिए ।
जानते हम सभी इस परं राज को,
जिन्दगी तब तलक जब तलक स्वांस है।
जोर इस पर किसी का है चलता नहीं ।
अर्थ-अंकुश भी यहाँ काम आता नहीं।।
जिन्दगी के सफर पर जरा ध्यान दो ,
क्या जरूरत है इस जिन्दगी के लिए।
प्रेम से पूरित जीवन दिली आस हो,
अच्छे कर्मों से संयुत पवित्र भाव हो।
राह जीवन का उसके सहज हो चले ,
प्रेम-पथिकों का मिलता जिसे साथ हो।
अर्थ इतना रहे कि जीवन चलता रहे,
अर्थ सब कुछ नहीं जिन्दगी के लिए।।
अर्थ-प्रेमी कभी दिल से प्रेमी नहीं,
अर्थ ही इनको जीवन का सुख-सार है।
अर्थ-बुनियाद पर प्रेम आसीन है ,
दिल के जज़्बात का अब नहीं जोर है।
माँ-पिता भी पराजित हुए अर्थ से ,
भाई-बहनों का रिश्ता चले अर्थ से।
अर्थ की पूजा होती बड़े चाव से ,
अर्थ सब कुछ हुआ जिन्दगी के लिए।।
अर्थ से प्रेम का है नशा अति बुरा ,।
खूनी रिश्तों में चल जाता जो है छुरा।
इक हक़ीक़त सुनो आज की बात ये,
जंग जो बढ़ चली निज तनय-बापमें।
विरासत को लेकर इस छिड़ी जंग में ,
पुत्र को मार डाला इस सगे बाप ने ।
अर्थ-लिप्सा मेंअब क्या नहीं हो रहा,
बाप के खून से बेटा है नहा रहा ।।
परिवारी रिश्तों में दिली प्रेम,
हर तरफ दिखाई देता था ।
अब अर्थ-प्रेम से ये रिश्ते ,
पग-पग पर साधित होते हैं।।
दादा-दादी के तीर्थाटन की ,
जब बारी घर में आती थी ।
परिवारी जनों के आंखों में ,
प्रेमाश्रु धार बह जाती थी।।
उठ चली परम्परा अब यह भी,
वे बोझ बने परिवारों में । तन शिथिल हुआ जल को तरसें,
रोटी नसीब नहीं पेटों में ।।
दादी-दादा की क्या विसात ,
माँ-बाप भी समझ से परे हुए।
इनका मरना-जीना भी अब ,
निज हानि -लाभ के अर्थ हुए ।।
पत्नी के अति आकर्षण में,
बेटा यदि खिंच जाता है ।
तब सास-ससुर की पूजा में,
उसका मन रम जाता है ।।
अर्थ -दौड़ की महिमा का ,
जो भी बखान वह सब कम है।
पति प्रिय और पत्नी प्रिये रूप,. अब अर्थ से साधित होते हैं ।।
धन लाये तो बेटा बेटा है ,
धन देती बेटी बेटी है ।
धन अर्जन के तौर-तरीकों को,. माँ -बाप कभी न पूँछते हैं ।।
धन-दात्री पत्नी के चरणों में ,
पति प्रेम से शीश झुकाता है।
जब जहाँ कहे बिनु टिप्पणी के,
तब तहाँ उसे पहुँचाता है ।।
दिन भर के क्रिया-कलापों में ,
यदि कहीं चूक हो जाती है ।
पति की क्लास ले पत्नी तब ,
जी भर कर डांट पिलाती है ।
ईश कृपा से यदि दोनों ,
सरकारी सेवा से संयुत है. बातों की जंग तब छिड़ती है,
और प्रेम पराजित होते हैं ।।
त्याग गया सद्भाव मिटा ,
दिली -प्रेम अब दूर हुआ ।
धन -अर्चन में हैं लगे सभी ,
मानवत्व गुणों से वैर बढ़ ।
जीवन के सभी आयामों पर,
अब दिली प्रेम पराजित है ।
अर्थ के सर पर सेहरा है ,
दिली प्रेम उपहासित है ।।.
-------सुरेश लाल श्रीवास्तव ------
प्रधानाचार्य
राजकीय इण्टर कालेज
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर
उत्तर प्रदेश
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