दोहा-सुनि भसुंडि-मुख प्रभु-चरित,भगति-बिमल रस सानि।
कहेसि गरुड़ मम हिय भई, नवल प्रीति गुन-खानि।।
मोह व माया जनित दुःख, गए तुरत सभ भागि।
मोह-मुक्त तुम्ह कीन्ह मोहिं,बंदउँ चरन सुभागि ।।
भयो जनम मम अब सुफल,पा प्रसाद तव नाथ।
संसय-भ्रम मम बिगत मन,भजउँ नवा निज माथ।।
सिर झुकाइ अरु करि नमन,हृदय राखि प्रभु राम।
गयो गरुड़ बैकुंठ तब, सुमिरत हरि कै नाम।।
सुरसरि बास धन्य ई देसा।
धन्य नारि बहु धन्य नरेसा।।
धर्महि धन्य,धन्य सभ लोंगा।
भुइँ भारत प्रधान जप-जोगा।।
धन्य धरनि जहँ नित सतसंगा।
जप-तप-नियम-धरम नहिं भंगा।।
सभ जन सुनहिं रुचिर मन लाई।
राम-कथा पुनि-पुनि हरषाई।।
गुरु-पद प्रीति रखहिं नर-नारी।
राम-भगत सुख कर अधिकारी।।
सकल कामना पूरन होवै।
कथा कपट बिनु सुनै न खोवै।।
दोहा-राम-भगति दुर्लभ मुनिन्ह,बरु ते करहिं प्रयास।
बिनु प्रयास नर पावहीं, कहि-सुनि रखि बिस्वास।।
प्रार्थना-
हे दीन दयालु-कृपालु प्रभो,
सद्बुद्धि सभी जन को दीजै।
पथ-भ्रष्ट न हों,न हों कपटी,
नहिं लोलुप हों,न हों हवसी।
अज्ञान-अँधेर को छाँटि प्रभो,
रवि-ज्ञान-प्रकाश उदित कीजै।
माया-भ्रम-मद-मोह क जाल,
जंजाल-प्रभाव जरा हरिए ।
नारि क लाजि बचाइ प्रभो,
खल-बुद्धि क शुद्धि जरा करिए।
बालक जो बिनु मात-पिता,
असहाय प्रभो तू शरण लीजै।
राष्ट्र बेहाल-विवाद-विकल,
कहीं जाति-विभेद त धर्म-विभेद।
आतंक भरा है सकल जग में,
कहीं वर्ण- विभेद त कर्म-विभेद।
हे जग-नायक राम प्रभो,
जनमानस - शुद्धिकरण कीजै ।
राष्ट्र सभी आपस मिलकर,
बस एक कुटुंब बने सबहीं।
सुख में,दुख में सब साथ रहें,
अरु नेह - सनेह करें सबहीं।
हे जग-स्रस्टा - पालनकर्ता,
जग-कल्य�
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