कवि निकेश सिंह निक्की

 संक्षिप्त परिचय

 नाम निकेश सिंह निक्की

 जन्म स्थान खोकसा रसलपुर थाना दलसिंहसराय पोस्ट बम्बैया हरलाल जिला समस्तीपुर बिहार

 विशेष अभिरुचि :- साहित्य लेखन, समाजसेवा एवं राजनीति

 कृति अखण्ड भारत (काव्य संग्रह) 

  जागो पुनः एक बार (काव्य संग्रह)

 जनक्रांति काव्य संग्रह

 उर्मिला के पीर कहानी संग्रह 

 स्मृति के पार कहानी संग्रह

  पति परमेश्वर नाटक

प्रकाशित दीक्षा प्रकाशन दिल्ली

 सम्मान साहित्य रत्न, साहित्य सारथी गौरव, साहित्य गौरव, काव्य गौरव, महाकवि जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान आदि एवं प्रशस्ति पत्र द्वारा सम्मानित

ण्मोकार आधा साहित्य आधा मिडिया आदि चैनल पर काव्य पाठ 

 संस्थापक बिहार नौजवान सेना समाजिक संगठन

 राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य राष्ट्रवादी लेखक संघ भारत

 विशेष एक दर्जन से अधिक सांझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित


भारत गाथा

जिस भारत के ज्ञाननिधि में,

सकल विश्व नहलाता था।

खड़ी नालंदा बता रहीं है,

सकल विश्व ललचाता था।



जिसके आगे मैक्समूलर भी,

मां कह न फूल समाता था।

इत्सांग भी जिसके गुण को,

गाते ही थक जाता था।


जब जगत में फैला था,

तिमिर का व्यापक सम्राज्य।

तभी लिख कर छोड़ा भारत,

पावक का अनुपम इतिहास।


पढना लिखना कोई न जाने,

 सकल विश्व में कौन सिखावें।

 छः शास्त्र नव ग्रंथ के ज्ञाता,

 सकल विश्व भारत को मानें।


कहें निकेश भारत की गाथा,

सकल विश्व में भाग्य विधाता।

देकर सकल विश्व को ज्ञान,

आज बनी है स्वयं अनजान।

कवि निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार


जनता चुप क्यों है

हंसी ठिठोली बहुत हुआ,

अब गांडीव सी टंकार करो।

या केशव के पांचजन्य सा,

प्रयली प्रचंड हुंकार करो।


वोटों के लालच में देखो,

घोषणा कैसी होती है।

देश द्रोहियों को भी अब,

फूलों की स्वागत होती है।


कोई भी उठ कर आता है,

उलूल जुलूज बक जाता है।

देशद्रोही कानून को भी ,

खत्म करने की बात कर जाता है।


भारत की अपमान देखकर,

 फिर भी जनता चुप क्यों हैं।

उलूल जुलूल बात करने वालों की,

जीभ काटने में क्यो डर है।


कहें निकेश अब गरजेगे,

 बनकर गांडीव की टंकार।

 छोड़ेंगे नहीं अब उसको,

 जो राष्ट्र से करें खिलवाड़।

कवि निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार



गौरवशाली बिहार

मिथिला के पहचान बिहार के,

हम भारत के रखवाले हैं।

विद्यापति की काव्य ध्वनि हम,

 कुंवर सिंह के भाले हैं।


गौरवशाली मगध की गाथा,

 आज इतिहास सुनाती है।

चक्रवर्ती अशोक की शौर्य,

 कण कण में बिहार गाती है।


दिनकर की इतिहास संजोए,

 अविरल गंगा धार है।

अमर कहानी तिलका की,

 गा रही इतिहास है।


धन्य धन्य वलिहारी हूं,

क्योकि मैं बिहारी हूं।

 तक्षशिला और नालंदा की,

 पद चिन्ह और पुजारी हूं।


कहें निकेश हे मां मिथले,

 कोटि-कोटि है नमन तुझे।

 अगले जन्म में भी देना,

  गौरवशाली बिहार मुझे।

कवि निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार



भारत का रखवाला हूं

आंसुओ में पला बढ़ा हूं,

सच पर मरने वाला हूं।

 झोपड़ियों का चारण मैं,

 भारत का रखवाला हूं।


दूध दूध चिल्ला रहें,

बालक को मैंने देखा है।

पेट आग में जल रहें,

भिक्षुक को मरते देखा है।


मैं दुखियों का एक सहारा,

शब्द मेरी तलवार है।

मेरी लेखनी नहीं रुकेंगी,

 क्रांति का इंतजार है।


वो अमृत पी पीकर भी,

नित दिन मरते जातें हैं।

 हम बिष हलाहल पीकर,

 सदा अमर पद पाते हैं।


कहें निकेश मैं ज्वाला हूं,

 भारत का रखवाला हूं।

भूखें नंगें दलितों का,

 आंसू गाने वाला हूं।

कवि निकेश सिंह निक्की


समस्तीपुर बिहार


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