एस के कपूर श्री हंस

*।।ग़ज़ल।।  ।।संख्या  50  ।।*
*।।काफ़िया।। आया।।*
*।।रदीफ़।। जाये ।।*
1
जमीं है  जो धूल  उसको हटाया जाये।
दिलों में इक़ नई लौ को जलाया जाये।।
2
थक हार कर जो बैठ   गई  है उम्मीद।
उस उम्मीद को फिर से जगाया जाये।।
3
चला गया है  जो दूर   हमसे  रूठ कर।
लग कर गले उसको फिर बुलाया जाये।।
 4
क्योंकर लगी है आग सीने में नफरतों की।
उसीआग को अब बिलकुल बुझाया जाये।।
5
जो बात कर रही दूर हमको एक दूजे से।
हटा कर प्यार के गीतों को सुनाया जाये।।
6
बेवज़ह लगा दिये इल्ज़ाम एक दूजे पर।
उन दागों को सिरे से  अब मिटाया जाये।।
7
बीत गए जो पल बने थे महोब्बत को।
उन लम्हों को   फिर से  चुराया जाये।।
8
ये जो बेवजहआ गए बीच में राहुकेतु से।
उन्हें अबकी तो बहुत  दूर भगाया जाये।।
9
एक वक़्त थे जो अपने हमजोली हमराह।
उनको आज फिर   सीने से लगाया जाये।।
10
प्रेम और मिलन का त्यौहार है ये होली।
इसे मिलकर  महोब्बत से मनाया जाये।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
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