डॉ अभिमन्यू पाराशर काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार

 

नाम-डॉ अभिमन्यू पाराशर



पिता का नाम-श्री रामानंद शर्मा,
माता का  नाम-श्रीमती सुमन देवी,
पत्नी--श्रीमती रीना शर्मा,
पुत्र--दक्ष पाराशर,
जन्म स्थान : गाँव--शिमला,
तहसील-- खेतड़ी, जिला--झुंझुनूं (राजस्थान)
शिक्षा--शास्त्री , शिक्षा-शास्त्री, आचार्य(नव्य व्याकरण), सामुद्रिक रत्न,  एम.ए.(अंग्रेजी), (हिंदी),बी.लिव, पत्रकारिता,
रुचि-साहित्यसृजन, कविता, ज्योतिष/हस्तरेखा,समाज-सेवा,
संपर्क न.-9413723865,
              8769588160,
ईमेल:-astroabhimanyu89@gmail.com

संस्थाओं में पद
: राष्ट्रीय अध्यक्ष, बेटी बढ़ाओ फाउंडेशन,
:अध्यक्ष, साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति मंच एवं धर्मार्थ सेवा संस्थान,
:प्रदेश संरक्षक , विश्व सनातन वाहिनी (देवस्थान प्रकोष्ठ राजस्थान)
:अध्यक्ष, जलाराम बापा ज्योतिष संस्थान(रजि.)

सम्मान
:ज्योतिष/हस्तरेखा में गोल्डमेडलिस्ट,
:डॉ जितेंद्र सिंह पूर्व सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री द्वारा 'साहित्य श्री' उपाधि से सम्मानित,
:देश की कई संस्थाओं  से सम्मानित,
: कला श्री सम्मान,
:कोरोना योद्धा  सम्मान कई संस्थाओं से प्राप्त,
:ग्रामीण पत्रकारिता के लिए सम्मानित।
: लीजेंड दादा साहब अवार्ड से सम्मानित।
:राष्ट्रीय समाज सेवा रत्न अवार्ड से सम्मानित।
:भारत सेवा रत्न गोल्ड मैडल अवार्ड से सम्मानित।

लेखन:--
अनेक दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक समाचार पत्रों में लेखन,
ज्योतिष की पत्रिकाओं में लेखन।
साहित्यिक पत्रिकाओं मे लेखन l

विषय:--मेरी भाषा

हम तो सिर्फ करते हैं 14 सितंबर को ही हिंदी का सम्मान,
कहते हैं जिसको हम सब राष्ट्रभाषा नहीं रहता किसी को ध्यान,
हर समय बोलने वालों का करते हैं हम अपमान,
याद आता है बस हमें तो हिंदी बचाओ अभियान,
एक दिन भाषण देकर नेता क्यों समझते हैं खुद को महान ,
और दिन लगता है हिंदी बोलने से उनको अपना अपमान,
अब तो सुधर जाओ देशवासियों मत करो अपमान,
हमारी  राष्ट्रभाषा हिंदी को दिलवाओ अंतरास्ट्रीय पहचान,।

पं. अभिमन्यू पाराशर
साहित्यकार टी.सी.प्रकाश सदन
गाँव---शिमला, जिला--झुंझुनूं(राजस्थान)
9413723865,

मुझको लौटा दो वो कालेज के दिन

मुझको लौटा दो वो कालेज के दिन ,
वो फ़ानु भाई की चाय, समोसा और मटर,
टूट पड़ते थे हम इस कदर ।

वो आपस में मिलकर खेलना
अभिमन्य,प्रकाश, अमित, पन्नालाल ,लोहान ,रविंद्र का एक साथ खाना
याद आता है वह हॉस्टल का जमाना ।

वो एग्जाम के दिनों में रातों का जागना,
एक दूसरे के नोट से पढ़ना
बार-बार डेट शीट चेक करना परीक्षा शुरू होने से पहले ही खत्म होने पर क्या-क्या करेंगे
  ये सपने देखना ।

वो परीक्षा हाल में चुप बैठना मौका मिलते ही दाएं बाएं झांकना बड़ा याद आता है ..........
बस यार यह बता दे.....
बस पाणिनी के सूत्र दिखा द
यार हिंट दे दे बस .....
यह कह कह कर सबको परेशान करना ।

वो कालेज के दिन दोस्तों का फसाना ।
याद आता है बस वो हॉस्टल का जमाना ,
वो एक साथ नहाना,
कालेज की घंटी का बजना ,
फिर एक साथ दौड़ जाना ,
आज भी  याद आता है वो गुजरा हुआ पल सुहाना ।

वो रातों का पढ़ना,
गोल चक्कर पर जाकर चाय पीना,
आकर के खेलना,
याद आता है गुजरा पल सुहाना।

वो  सर्दियों की धूप में पार्क ग्राउंड में बैठना,
बातें करते करते वो छोटी-छोटी घास का उखाड़ना बड़ा याद आता है ,
वो ग्रुप में बैठकर हर आने-जाने वाले पर कमेंट पास करना ,
वो कॉलेज के दिन और दोस्तों का फसाना ,
"पाराशर "भूले से भी नहीं भूलेंगे वो हर पल सुहाना ।

वो  छुट्टी का दिन बिट्स में बिताना ,
मन की टेंशन को बिरला मंदिर में भगाना,
आज भी याद आता है वो पल सुहाना।

वो  बुधवार के दिन का इंतजार करना।

गणेश जी के मंदिर में जाना, तिवारी सर का सत्कार करना,
वो मिलना जुलना आज भी याद आता है वो पल सुहाना ।

वो शाम  की यादें वो पल सुहाना पार्क में बैठकर घंटों बतियाना, एक दूसरे का हालचाल जाना आज भी याद आता है वो पल सुहाना ।

वो हॉस्टल के साथियों को आदर देना,
शास्त्री जी ,आचार्य जी ,कहकर बुलाना ,
भारतीय संस्कृति की परंपरा को निभाना,

वो कॉलेज के वार्षिक उत्सव की पहले से तैयारी करना ,
और वार्षिक उत्सव के दिन अपने पुरस्कार का इंतजार करना ,
आज भी याद आता है वो पल सुहाना,

कि काश : कोई लौटा दे वो पल पुराना,
"पाराशर" भूले से भी नहीं भूलेंगे वो हर पल सुहाना।


शीर्षक:-- एक खास रिश्ता.

रिश्ता है एक बहुत ख़ास, जुड़ा है अपनापन और विश्वास।

राखी के धागों के संग, करवाता है अहसास।

रिश्ते तो बहुत है दुनिया में, मगर ये रिश्ता है खास ।
खुशी हो या गम हो कोई ,
उसे हो जाता है अहसास। क्योंकि बहन हो या भाई, होता दोनों को अटूट विश्वास।
भावनाओं का होता है विशेष वास ,
महसूस मात्र से हो जाता है आभास ।
खूबियों की करते हैं अक्सर तलाश,
फिर उनको ही बनाते हैं अपना निवास ।
ये ना होते कभी भी हताश, आखिर मंजिल मिलती है  इनके  ही पास।
करते हैं अपने नए सफर की तलाश ,
"पाराशर "इसलिए ही होता है यह रिश्ता खास

अभिमन्यू पाराशर
साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति भवन(गाँव--शिमला,
जिला--झुंझुनू (राजस्थान)
9413723865

शीर्षक:--जीतेगा इंडिया, हारेगा कोरोना,
मैं हूँ शिक्षा की नगरी,
जो रहती हूं हमेशा साफ-सुथरी,
यह कैसा दिन है आया,
हाय किसकी नजर लगी बुरी,
करो ना है भाई परीक्षा की घड़ी,
मेरा दिल घबराता, कब खत्म होगी ये घड़ी,
घर बंदी से जी घबराया,
ये कैसा दिन है आया,
कोरोना है महामारी,
ये छूत की बीमारी,
ऐसे में घर से निकलना,
पड़ जाएगा भारी,
साबुन से हाथ धोना हैं जरूरी,
आपस मे बना के रखना  थोड़ी दूरी,
6 फ़ीट का बना के रखना सबसे फासला,
पर मन की मन से मत रखना
दूरी।
इस दुःख की घड़ी में "पाराशर" तुम अपना संयम ना खोना,
वो दिन भी आएगा जल्दी, जब जीतेगा इंडिया, हारेगा कोरोना।
पं. अभिमन्यू पाराशर,
जलाराम बापा ज्योतिष संस्थान गाँव-- शिमला, जिला---झुंझुनूं, राजस्थान 332746
9413723865, 8769588160
astroabhimanyu89@gmail.com


शीर्षक  :-"मोबाइल और संस्कार"

इंसान को शांति नहीं
मोबाइल से नज़र हटती नहीं
सुबह उठते ही चाहिए मोबाइल
अब बच्चे बड़ो के पैर छूते नहीं
यह कैसा बदला है मानव
की अब किसी से मिलता नहीं
मोबाइल की हर ध्वनि से वाकिफ
लेकिन कोई
अपनो की पुकार सुनता नहीं
और इस गिरती दुनिया में
मोबाइल से ऊपर कोई उठता नहीं,
है गलत नहीं, यह फोन की आदत
अगर हो उपयोग सही की बाबत
ये तो है केवल संपर्क का साधन
और है मिलों दूर के दोस्त से "पाराशर"
जुड़े रहने का संसाधन।
पं. अभिमन्यू पाराशर
गाँव--शिमला, जिला--झुंझुनूं,(राजस्थान)


शीर्षक :--मां की ताकत .....
मां जिसको नाम दिया दुनियां और विधाता ने ।।
वो अनमोल सहारा धूप बारिस में जो दिया छाता ने।।
जिसको चाहे उसको सम्राट बना देती ममता के प्रभाव से।।
जिस पर टेढी नजरें कर दे उसको मटियाती अपने ताव से ।।
ये वो तगडियत जो सबरी बन सफलाती है ।।
ये वो बिगडियत जो कैकयी बन बनवासाती है।।
ये अंजनी के रूप में हनुमान जग को देती है।।
और कभी मंथरा संग मिल रूलाती है।।
इसकी ताकत को नकारना विनाशाई और बडी  नादानी है।।
ये ममताए तो मीठा पानी नहीं तो प्रलयंकाई और बडी दुख निशानी है।।
एक रूपया किराया लेकर तगडा अपमान आघात भी कर सकती करीने से।।
ये पानी अभाव अकाल ला सकती और पानी भरमार प्रलय  निज सीने से ।।
ये जिद पर आ जाए तो ईश कृपा भी थोडी है ।।
मेहर करे तो रेगिस दौडती घोडी है।।
पागल खराब अपराधी ठग गठ इसको झूठ में नाहर कहते हैं।
इसने नीति की उक्त आतताई मनमानी करते हैं।।
इसकी नीति भी रोचक अनूठी जच जाने की बयानी है।।
उक्त आतताई संग नीति और निज सुत संग अनिती कहानी है।।
इसकी मेहर इसकी मर्जी और सौभाग्य से मिला करती है ।।
मिल ग ई तो बंजर पौ बारह नहीं मतो समुंदर बनता  सूखी धरती है।।
मां की  कृपा मां की मर्जी बडी रोचक बडी अपरमपार है।।
इसको साध के रखना ये तीखी  बडी शमशीर और  धार है ।।
एक सुत ऐसा भी आज जग को जग हित में बतियाता हूं ।।
जो सुत नित अह़ं रहित हो कृपा 
याचना किया करता है ।।
पर मां का हठ नित सुत नकार किया करता है।।
सुत चमत्कार सेवा  नाम रोशन वादा देकर मदद मां चरणों में मंगियाता है।।
पर मां मन कठोर हो निज सुत धकियाता है।।
बस यही आकर हम महान हिंदुस्तानी खुद से ही ठगी किया करते है ।।
हम अपने ही एक झूठे लोक में जिया करते हैं।।
मां बाप कभी बुरे नहीं हो सकते लोह लीक कह बखनाते हैं।।
और सच को सच कहने से मुकराते हैं।।
मां कौशल्या तो मां कैकयी भी होती है ।।
राम बनवास गमन पर एक रोती दूजी मुसकाती है ।।
एक की सखी नीति दूजी बदबू मंथरा मितराती है ।।
पिता दशरथ तो पिता हिरण्य भी धरम लेख बतलाते हैं।।
पर हम तो आंख मूंद झूठ ही गाते हैं
कवि राज संग अभि अपने  वल्लभ कवि दिनकर धोक लगा कवियाए हैं।।
हमें मां को पूजना है आदरना है पर सच भी बखान होता रहे यही गाए हैं ।।
  --पं.अभिमन्यू पाराशर
जलाराम बापा ज्योतिष संस्थान ,शिमला(झुंझुनूं)
राजस्थान 9413723865

शीर्षक:-- मेरे अरमान:मेरे पिता
--------------------------
मेरे सपने मेरी जान है पिता,
मेरे अरमान है मेरे पिता,
मेरी सांसे, मेरी धड़कन,
मेरी आवाज है मेरे पिता,
मैं उनका प्रतिरूप प्यारा हूं वो जग में लाए मुझको,
मैं वो उजियारा हूं,
मैं उनका प्रतिरूप पयारा हूं,
निज साँसे  पूरी कर,
निज  जीवन तो पशु भी जीया  करते हैं,
पर नचिकेता वही जो पिता के दुख पीया करते हैं,
सुत पिता को पियारे,
और सम्माने भरपूर ,
यही जीवन की सार्थकता और मानव का नूर।

अभिमन्यू पाराशर
साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति भवन(गाँव--शिमला,
जिला--झुंझुनू (राजस्थान)

शीर्षक:-- योग-दिवस
सुख और स्वास्थ्य का चुम्बक योग हैं,
रोगों को भगाने का संयोग योग हैं,
ये दुनिया को हिन्द का अनुपम दान योग हैं,
सूर्य वंदना से शुभारंभ योग हैं,
स्वयं में स्फूर्ति भरने के लिए योग हैं,
प्रातःकाल घर से निकल पड़ना योग हैं,
यदि जग चाहे होना सुखी, स्वस्थ, शतायु,
तो सिख ले हिन्द से ,
गौ-पालन, शाकाहार, नशा रहित , योग , संगीत चिरायु।
          अभिमन्यू पाराशर
साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति भवन(गाँव--शिमला,
जिला--झुंझुनू (राजस्थान)


*मेरे पापा*
मेरे पापा मेरे सारथी, रथ दौड लगाएगा।।
मेरी लेखनी ही गांडीव मेरा विफलता मार भगाएगा।।
मेरे पापा लेखनीधर,लेखनी पूंजी दी वरदान में।।
मैं उनका नाम रोशनाउंगा अखिल हिंदुस्तान में।।
उंहोंने मुझे अनमोल ब्रह्म जीवन दिया, दुनिया जहान में।।
मैं शुभ सफल करमों के कशीदे पढूंगा उनके मान और सम्मान में।।
पापा मुझे जग में लाए और मैं लाया उनका पोता।।
भाग्य हमारे जगें रहें और अभाग्य रहे सोता।।
मेरे पापा अनमोल पिता  भी हैं।।
मेंरे संरक्षक और सफलता   भी हैं।।
मेरे पापा पूज्नीय ह्रधय श्रद्धा सरोकार से।।
वे शतायु रह हमें संरक्षाएं सफलाए जीवन व्यापार से।।

अभिमन्यू पाराशर
साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति भवन(गाँव--शिमला,
जिला--झुंझुनू (राजस्थान)
9413723865

शीर्षक: *पिता की महिमा*
पिता जगत में अनमोल हैं , पिता ही हैं पालनहार ।।
पिता  में समाई खुशिया अपार,
,पिता ही हैं त्योंहार।।
पिता ने जीवन अनमोल दिया, रोटी देकर पाला ।।
पिता की  आशिर चाबी से खुले है जय का ताला।।
पिता कंधे पर बिठा,मंदिर के दर्शन दर्शाए।।
पिता के खिलाए आम मूंगफली बहुत याद आए।।
पिता जगत में अनमोल हैं पिता संरक्षक साए।।
पिता जगत में अनमोल साया, पिता है पालनहार ।।
पिता है खुशियों का मेला और पिता है जेवनार ।।
सो हर पुत्र को पिता सम्मान सेवा करनी चाहिए।।
पिता अनमोल हैं पिता की महिमा गाहिए।।(गाईए)
पिता जनक, पिता दशरथ और पिता जमदगनी हुए।।
हम अच्छे बेटे बने, ईति(ईतिहास) से बढकर श्रेष्ठ कर्म करें नए।।
जरूरी नही हर पिता मिनस्टर औ धनदार हो।।
गरीब हो पर आत्मा में प्यार हो।।
निज संतती से आत्मीय सरोकार हो  ।।
प्यार सम्मान श्रद्धा ही अनमोल गुण जो पिता संतती रिश्ते को सफलाए हैं।।
ये गुण  बाजार नही बिकते, हर महान ने मन में उपजाएं हैं।।
इनको उपजाया अपनाया वो ही श्रेष्ठ रिश्ताधारी है ।।

अभिमन्यू पाराशर
साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति भवन(गाँव--शिमला,
जिला--झुंझुनू (राजस्थान)
9413723865

अभिमन्यू पाराशर
साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति भवन(गाँव--शिमला,
जिला--झुंझुनू (राजस्थान)
9413723865

             

              परिचय

नाम-अभिमन्यू पाराशर
पिता का नाम-श्री रामानंद शर्मा,
माता का  नाम-श्रीमती सुमन देवी,
पत्नी--श्रीमती रीना शर्मा,
पुत्र--दक्ष पाराशर,
जन्म स्थान : गाँव--शिमला,
तहसील-- खेतड़ी, जिला--झुंझुनूं (राजस्थान)
शिक्षा--शास्त्री , शिक्षा-शास्त्री, आचार्य(नव्य व्याकरण), सामुद्रिक रत्न,  एम.ए.(अंग्रेजी), (हिंदी),बी.लिव, पत्रकारिता,
रुचि-साहित्यसृजन, कविता, ज्योतिष/हस्तरेखा,समाज-सेवा,
संपर्क न.-9413723865,
              8769588160,
ईमेल:-astroabhimanyu89@gmail.com

संस्थाओं में पद
:अध्यक्ष, साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति मंच एवं धर्मार्थ सेवा संस्थान,
:प्रदेश अध्यक्ष, विश्व सनातन वाहिनी (देवस्थान प्रकोष्ठ राजस्थान)
:अध्यक्ष, जलाराम बापा ज्योतिष संस्थान(रजि.)

सम्मान
:ज्योतिष/हस्तरेखा में गोल्डमेडलिस्ट,
:डॉ जितेंद्र सिंह पूर्व सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री द्वारा 'साहित्य श्री' उपाधि से सम्मानित,
:देश की कई संस्थाओं  से सम्मानित,
: कला श्री सम्मान,
:कोरोना योद्धा  सम्मान कई संस्थाओं से प्राप्त,
:ग्रामीण पत्रकारिता के लिए सम्मानित।
लेखन:--
अनेक दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक समाचार पत्रों में लेखन,
ज्योतिष की पत्रिकाओं में लेखन।

शीर्षक:--मुझको लौटा दो वो कालेज के दिन

मुझको लौटा दो वो कालेज के दिन ,
वो फ़ानु भाई की चाय, समोसा और मटर,
टूट पड़ते थे हम इस कदर ।

वो आपस में मिलकर खेलना
अभिमन्य,प्रकाश, अमित, पन्नालाल ,लोहान ,रविंद्र का एक साथ खाना
याद आता है वह हॉस्टल का जमाना ।

वो एग्जाम के दिनों में रातों का जागना,
एक दूसरे के नोट से पढ़ना
बार-बार डेट शीट चेक करना परीक्षा शुरू होने से पहले ही खत्म होने पर क्या-क्या करेंगे
  ये सपने देखना ।

वो परीक्षा हाल में चुप बैठना मौका मिलते ही दाएं बाएं झांकना बड़ा याद आता है ..........
बस यार यह बता दे.....
बस पाणिनी के सूत्र दिखा द
यार हिंट दे दे बस .....
यह कह कह कर सबको परेशान करना ।

वो कालेज के दिन दोस्तों का फसाना ।
याद आता है बस वो हॉस्टल का जमाना ,
वो एक साथ नहाना,
कालेज की घंटी का बजना ,
फिर एक साथ दौड़ जाना ,
आज भी  याद आता है वो गुजरा हुआ पल सुहाना ।

वो रातों का पढ़ना,
गोल चक्कर पर जाकर चाय पीना,
आकर के खेलना,
याद आता है गुजरा पल सुहाना।

वो  सर्दियों की धूप में पार्क ग्राउंड में बैठना,
बातें करते करते वो छोटी-छोटी घास का उखाड़ना बड़ा याद आता है ,
वो ग्रुप में बैठकर हर आने-जाने वाले पर कमेंट पास करना ,
वो कॉलेज के दिन और दोस्तों का फसाना ,
"पाराशर "भूले से भी नहीं भूलेंगे वो हर पल सुहाना ।

वो  छुट्टी का दिन बिट्स में बिताना ,
मन की टेंशन को बिरला मंदिर में भगाना,
आज भी याद आता है वो पल सुहाना।

वो  बुधवार के दिन का इंतजार करना।

गणेश जी के मंदिर में जाना, तिवारी सर का सत्कार करना,
वो मिलना जुलना आज भी याद आता है वो पल सुहाना ।

वो शाम  की यादें वो पल सुहाना पार्क में बैठकर घंटों बतियाना, एक दूसरे का हालचाल जाना आज भी याद आता है वो पल सुहाना ।

वो हॉस्टल के साथियों को आदर देना,
शास्त्री जी ,आचार्य जी ,कहकर बुलाना ,
भारतीय संस्कृति की परंपरा को निभाना,

वो कॉलेज के वार्षिक उत्सव की पहले से तैयारी करना ,
और वार्षिक उत्सव के दिन अपने पुरस्कार का इंतजार करना ,
आज भी याद आता है वो पल सुहाना,

कि काश : कोई लौटा दे वो पल पुराना,
"पाराशर" भूले से भी नहीं भूलेंगे वो हर पल सुहाना।


शीर्षक:--मेरी भाषा

हम तो सिर्फ करते हैं 14 सितंबर को ही हिंदी का सम्मान,
कहते हैं जिसको हम सब राष्ट्रभाषा नहीं रहता किसी को ध्यान,
हर समय बोलने वालों का करते हैं हम अपमान,
याद आता है बस हमें तो हिंदी बचाओ अभियान,
एक दिन भाषण देकर नेता क्यों समझते हैं खुद को महान ,
और दिन लगता है हिंदी बोलने से उनको अपना अपमान,
अब तो सुधर जाओ देशवासियों मत करो अपमान,
हमारी  राष्ट्रभाषा हिंदी को दिलवाओ अंतरास्ट्रीय पहचान,।

शीर्षक:- बेटियां है अनमोल

बेटियां हैं अनमोल इसे बचाओ रे,
बेटियां हैं अनमोल,
इन्हें खूब पढ़ाओ, लिखाओ,  और आगे बढ़ाओ,
बेटियां हैं अनमोल,
बेटियां होती सबकी प्यारी इन को बढ़ाना हम सबकी जिम्मेदारी,
जब भी तुम कोई मांगलिक कार्य करवाओ,
' सबको तुम आठवां वचन दिलाओ ,
बेटियां हैं अनमोल,

'पाराशर' तुमने ठान लिया है,
बेटी ने जग को सुंदर नाम दिया है,
कन्या भ्रूण हत्या रोको रे,
गोल्डमेडल का तुम गला न घोटो रे,
बेटियां हैं अनमोल, इनको बचाओ रे,

अभिमन्यू पाराशर
हिंदी
हिंदी हिन्द का अनमोल उपहार....
हिंदी हिन्द का अनमोल उपहार,हिंदी प्यारा शब्द संसार है।।
हिंदी ने अनमोल रतन दिए बच्चन ,सुमन,दिनकर शब्द कार है।।
हिंदी संपन्न ,हिन्द वैज्ञानिक, हिंदी हिन्द राष्ट्र प्यार है।।
हिंदी सम्नाओ ,अटल हिंदी सपूत साकार है।।
हिन्द राष्ट्र एकता का हिंदी बेजोड़ फेवि कोल जोड़का र है।।
हिंदी को यथोचित  सम्मान मिले इसकी दर कार है।।
बालि वु ड फिल्मों में शुद्ध हिंदी प्रयोग हो, सुनिश्चित हिन्द सरकार करे।।
हिन्द में हिंदी नस टा ने वालों को लगाम हिन्द सत्ता क़ार करें।।
हिंदी दिए अनमोल सितारे,बच्चन परसाई सुमन पंत प्रसाद दिनकर जय जय कार है।।
हिंदी हिन्द जीवन रेखा,हिंदी प्राण संचार है।।
धरा से अभिराज स्वर्ग से परसाई सुमन दिनकर जयघोष सुमधुर पुरजोर है।।
हिंदी अनंत सागर ज्ञान का जिसका नहीं कोई छोर है ।।
         _अभिमन्यू पाराशर
      शिमला(झुंझुनूं)राजस्थान
9413723865

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