निशा अतुल्य

 बाल कविता

15.3.2021


माँ आ गई होली प्यारी 

मुझको रंग दिला दो तुम 

रंग बिरंगे प्यारे प्यारे

गुब्बारे दिलवादों तुम ।


रंग भरूँगा गुब्बारों में 

चढ़ कर छत सबको मारूंगा

भीग जाएंगे जब वो रंग से

ताली खूब बजाऊँगा ।


माँ बोली ये क्या कहते हो 

ये बात है बहुत बुरी 

चोट लग जाये कहीं किसी को

ऐसे नहीं खेलो होली ।


रंग लगाओ गुलाल लगाओ 

गले प्रेम से मिलो सबसे

चाट पकौड़ी गुंजिया पापड़

खाओ सब मिल ढेर सारे ।


टेसू का जो रंग बनाया

स्वयं भीगो,और भीगो डालो

गुलाल उड़ाओ खूब लगाओ ।

सबको रंग में रंग डालो ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

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