डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*गीत*(होली)
दे  मजबूती  संबंधों  को,
होली का त्यौहार निराला।
मित्र-भाव के रंग सभी मिल-
बनते  अमृत का मधु प्याला।।

नीले - पीले - हरे - गुलाबी,
होते एक सभी घुल मिलकर।
बच्चे - बूढ़े - युवा सभी जन,
रहते  रंगों   से  तरोबतर ।
अबीर-गुलाल पुते  सभी मुख-
लगें  प्रेम  की  अद्भुत  शाला।।
      बनते अमृत का मधु प्याला।।

होली  का  हुड़दंग  सुहाना,
फगुवा -जोगीरा-गीत मधुर।
बजा मँजीरा-ढोल नाच हो,
लगता  कष्ट हो  गए  क़ाफुर।
गले  लगा  कर झूमे सब जन-
प्रेम-रंग  सबको  रँग  डाला।।
      बनते अमृत का मधु प्याला।।

चेहरे  पुते  विविध  रंग  में,
देते  हैं  संदेश  प्यार  का।
मित्र-भाव  की  सीख ये देते,
चित्त  मिलनसार व्यवहार का।
ये  सब  आपस  में  हैं  लगते-
विविध  पुष्प की  सुंदर माला।।
      बनते  अमृत का मधु प्याला।।

मस्ती  का  मधुमास  महीना,
भरता  है  उत्साह  जनों  में।
पुष्प-गंध - मकरंद  हेतु  ही,
भ्रमर  हैं  आते  उपवनों  में।
बहे  वसंती  पवन  सुगंधित-
लेकर मस्त  स्वाद  की  हाला।।
       बनते  अमृत का  मधु  प्याला।।
                   ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                      9919446372

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