डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 पहला अध्याय-9
  *पहला अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-9
बिधि-बिधान जानै नहिं कोऊ।
संभव करै असंभव सोऊ।।
    आग लगै जब कानन माहीं।
    कठिनइ बहुत बताइ न पाहीं।।
लकड़ी जरी दूरि जे आहीं।
या फिर जरी जवन नकचाहीं।।
   कारन कवन एक तन स्वस्था।
   जानि न पाऊँ अपर अस्वस्था।।
अस बिचार करि मन बसुदेवा।
सुनहु कंस अस कह बिनु भेवा।।
     देवकि भय नहिं तुमहीं कोऊ।
     पुत्रहि भय बस तुमहीं होऊ।।
जदि कोउ पुत्र भवहि अब मोंहीं।
अरपहुँ लाइ ताहि में तोहीं।।
    सुनि अस बचन कंस प्रन त्यागा।
     बध-बिचार तजि भे अनुरागा।।
तब बसुदेव भवन निज आयो।
कंस-प्रसंसा मन न अघायो।।
    रही देवकी सती-साधवी।
    देवन्ह प्रिया औरु माधवी।।
तनय आठ अरु तनया एका।
जनी देवकी बहुतै नेका।।
    प्रथम पुत्र जब कंसहि अरपेयु।
    कंस तुरत बसुदेव समरपेयु।।
प्रथम तनय नहिं मोरा घालक।
कंस कहा बस अठवाँ बालक।।
    कीर्तिमान नाम सुत जासू।
    लौटे बसुदेवइ भरि आँसू।।
तनय-समर्पन बड़ मन छोभा।
बचन-बद्धता साँचहि-सोभा।।
    सत्यसंध जन करहिं निबाहू।
    करहिं न कबहुँ कष्ट-परवाहू।।
नीच न छाँड़ै कबहुँ निचाई।
ग्यानी तजै न कबहुँ सचाई।।
    इस्वर बसहिं जितेंद्री हृदये।
    यहि तें ओनकर सभ सँग निभये।।
अइसन लखि सुभावु बसुदेवा।
कंस तनय तासू नहिं लेवा।।
    पुत्र आठवाँ चाहिय मोंहीं।
     नभ-बानी अस जानउ तोहीं।।
बिहँसत कहा कंस वहिं ठाहीं।
देहु मोंहि जे अठवाँ आहीं।।
दोहा-सत्यसंध बसुदेव तब,लौटे धरि मन आस।
         अहहि कंस बड़ कपट-मन,कस होवे बिस्वास।।
         कहे मुनी सुकदेव पुनि,सुनहु परिच्छित मोंहि।
         नारद औरउ कंस कै,बाति बतावहुँ तोहिं।।
                       डॉ0हरि नाथ मिश्र
                        9919 44 63 72


गीतिका*
          *गीतिका*(कोरोना)
मंज़र बहुत भयानक,पैदा किया कोरोना,
मौतें तमाम हो रहीं,सर्वत्र रोना-धोना ।।

है विश्व में मचा हुआ,कोहराम हादसों से,
लाशें बिछी हुईं हैं,मुश्किल हुआ है ढोना।।

यह आपदा है दैवी,या इंसान का फितूर,
सुलझी नहीं पहेली,इसी बात का है रोना।।

हर देश कर रहा है,अपनी सुरक्षा विधिवत,
संयम-नियम-नियंत्रण, निदान बस कोरोना।।

रहें अलग-थलग तो,शायद बचे ये जीवन,
स्पर्श दूसरे का,करके है प्राण खोना ।।

शायद प्रकृति-प्रकोप का,परिणाम दैत्य-दानव।
आबो-हवा में अब तो,निश्चित सुधार होना ।।

नदियों का नीर निर्मल,नीला दिखे गगन है।
पूरा नक्षत्र-मण्डल,दिखने लगा सलोना।।

लेती अगर है  कुदरत,देती मग़र खुशी भी,
कैसे मिलेंगी फसलें,यदि हो न बीज बोना।।

युग के सुधार ख़ातिर, रावण का जन्म अच्छा,
श्रीराम जी का आगमन,करता है युग को सोना।।

खिलते चमन के फूल को,पत्ते हरे शज़र को,
होता यक़ीन देख,है स्वच्छ कोना-कोना ।।

                   ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                      9919447372

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