*पहला*-4
*पहला अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-4
एकमात्र बस ई तन मोरा।
रह अलम्ब दुइ बंसन्ह थोरा।।
ताहि जरायो अस्वतथामा।
ब्रह्मइ-अस्त्र छोड़ि बलधामा।।
तब मम माता भगवत्सरना।
कीन्ह जाइ स्तुति हिय करुना।।
निज कर धारि चक्र भगवाना।
मातु-गरभ प्रबिसे जग जाना।।
रहि के भीतर आतम रूपा।
जीवहिं सेवहिं प्रभू अनूपा।।
बाहर रहि के काल समाना।
जीव क नास करहिं भगवाना।।
लीला करहिं मनुज-तन धारी।
अचरज बिबिध करैं बनवारी।।
लीला तासु सुनावहु अबहीं।
करि-करि बिधिवत बरनन सबहीं।।
भए तनय बलदाऊ कैइसे।
दोनों मातुहिं अइसे-तइसे।।
तनय रोहिनी प्रथम बतायो।
मातु देवकी पुनि कस जायो।।
निज पितु-गृह तजि के कस गयऊ।
ब्रज मा कृष्ना असुरन्ह तरऊ।।
कहँ-कहँ लीला कीन्ह कन्हाई।
गोप-सखा सँग धाई-धाई।।
भगत-बछल प्रभु नंदकिसोरा।
मनि-जदुबनसिन-जसुमति-छोरा।।
मारि गिराए कंसहिं मामा।
कहहु मुनी काहें बलधामा।।
केतने बरस रहे द्वारका।
अबहिं बतावउ मुनिवर हमका।।
पतनी केतिक रहीं किसुन कै।
लीला जेतनी कीन्ह सिसुन्ह कै।।
जानउ सभ कछु तुम्ह मुनि-नाथा।
आदि-अंत सभ किसुनहिं गाथा।।
हमहिं न भूख-पियासिहिं पीरा।
लीला सुनहुँ जबहिं धरि धीरा।।
दोहा- सुनु,कह सौनक सूत जी,प्रश्न परिच्छित जानि।
कहे कथा समुझाइ के,कृष्न-चरित गुनखानि।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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